गन्ना गाथा : ग्लोबल मार्केट में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बाजार (Biodegradable Plastic Market) का आकार लगभग 3.76 लाख करोड़ का है. इतना ही नहीं, इसके हर साल लगभग 10 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है. क्योंकि दुनिया भर के देश की सरकारें सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगा रही हैं. साथ ही लोगों में जागरूकता बढ़ रही है. प्लास्टिक कचरे (Plastic Waste) के दुष्प्रभावों के बारे में जनता की जागरूकता से कृषि वेस्ट से उत्पादित बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग को बढ़ाने से कृषि क्षेत्र के विकास में मदद मिलने की उम्मीद है. क्योकि उपभोक्ता पर्यावरण-अनुकूल होने के कारण बायोडिग्रेडेबल वस्तुओ के लिए अधिक भुगतान करने को तैयार हैं. इसमें देश में उगाई जाने वाली गन्ने फसल अहम भूमिका निभा सकती है. क्योंकि गन्ने का रस जितना उपयोगी है, उसके पेराई के बाद निकली खोई (Sugarcane bagasse) भी किसी भी तरह से कम नहीं हैं .भारत में गन्ने की खेती हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर होती है. लोग गन्ने से गुड़ बनाते हैं, लेकिन इसका खोई यूं ही बर्बाद हो जाता है. कई लोग इसे खेतों में जला देते हैं, जिससे काफी प्रदूषण होता है. वहीं गन्ने से बायोडिग्रेडेबल क्रॉकरी या कप प्लेट समेत कई वस्तुएं बनाकर आप आर्थिक आय के साथ पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं. आज की गन्ना गाथा में हम जानेंगे कि गन्ने का खोई पर्यावरण और धन दोनों के नजरिए से कैसे बेहतर है.
चीनी मिलों में प्रोसेसिंग किए गए एक टन गीले गन्ने को पेरने के बाद लगभग 280 किलोग्राम खोई निकलती है. अगर ये सूख जाती है तो इसका वजन लगभग 140 किलो हो जाता है. देश में हर साल चीनी मिलों में गन्ने की प्रोसेसिंग के बाद 90 लाख टन खोई निकलती है. चीनी मिलों द्वारा इसका 50 प्रतिशत उपयोग बिजली और ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है और शेष खोई बच जाती है. खोई में फाइबर 48 फीसदी होता है. हालांकि एक समय था, जब लोग खोई और पत्तियों के व्यावसायिक और वैज्ञानिक उपयोग के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे, लेकिन आज गन्ने की खोई और पत्तियों का उपयोग जैव-खाद, जैव-ईंधन, जैव-प्लास्टिक, कागज और प्लाईवुड के साथ-साथ एकल-उपयोग बायोडिग्रेडेबल क्रॉकरी के उत्पादन में भी हो रहा है. गन्ने की खोई थर्माकोल और प्लास्टिक जैसे जहरीले पदार्थों से बने उत्पादों का एक बढ़िया विकल्प है. गैर-विघटित प्लास्टिक एक वैश्विक समस्या है. दुनिया भर की देश की सरकारें सिंगल प्लास्टिक यूज पर प्रतिबंध लगाकर और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग को बढ़ावा देकर इस समस्या से निपट रही हैं. आने वाले समय में बाजार को बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के प्रयोग में और भी तेजीआएगी, जिसमे गन्ने की खोई का उपयोग करके किसान छोटे से लेकर बड़े स्तर पर बायोडिग्रेडिबल क्रॉकरी का उद्योग खड़ा कर सकते हैं.
भारतीय गन्ना अनुसंधान सस्थान लखनऊ के कृषि वैज्ञानिक और प्रसार निदेशक डॉ ए. के.साह ने किसान तक से बताया कि आज के वक्त में गन्ने की खोई जैव ईंधन, प्लास्टिक, कागज और प्लाईवुड निर्माण जैसे उद्योगों के लिए एक सुलभ कच्चा माल है, लेकिन उनके कारखानों के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत होती है. जबकि गन्ने की खोई से छोटी पूंजी से बायो-क्रॉकरी बनाई जा सकती है. और यह लघु एवं मध्यम उद्यमों की श्रेणी में आता है. देश में बहुत से लोग बायो-क्रॉकरी बना रहे हैं. लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी आय बढ़ाने और रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. उन्होंने ने कहा कि बायो-क्रॉकरी पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है. कूड़े में फेंकने पर ये तीन महीने में पूरी तरह से विघटित हो जाते हैं. इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव या साइड इफेक्ट नहीं है. खोई से बनी बायो-क्रॉकरी को माइक्रोवेव, ओवन और रेफ्रिजरेटर में रखा जा सकता है. इसका उपयोग पैकेजिंग में भी किया जा सकता है.
डॉ ए. के.साह ने बताया कि सबसे पहले खोई और गन्ने की पत्तियों को धूप में सुखाया जाता है. फिर इसे बड़े बर्तनों में पानी के साथ मिलाकर लुगदी बनाया बनाया जाता है. गाढ़ा पेस्ट बनाने के लिए लुगदी को अच्छी तरह मिलाएं. फिर मशीन की सहायता से इसे निर्धारित खांचे में भरकर उच्च तापमान और दबाव पर गर्म किया जाता है और अलग-अलग डिजाइन की क्रॉकरी के रूप में ढाला जाता है. देश के कई संस्थानों में बायो-क्रॉकरी के उत्पादन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. कानपुर की राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के वैज्ञानिको ने गन्ने की खोई से बर्तन और पार्टिकल बोर्ड का उत्पादन करने की देशी तकनीक विकसित की है. तकनीक का पेटेंट भी करा लिया गया है.
डॉ ए.के.साह कहा की इसी तरह, गन्ने की खोई से बनी बायो-क्रॉकरी में थर्माकोल और प्लास्टिक से बनी सिंगल यूज प्लास्टिक की क्रॉकरी की जगह लेने की अपार क्षमता है. इससे चीनी मिलें बनाकर अधिक मुनाफा कमा सकती हैं और पर्यावरण में योगदान दे सकती हैं. जैसे एथनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम नीति के कारण ही पेट्रोल में10 फीसदी एथेनॉल मिश्रण के स्तर तक पहुंचने से न केवल चीनी उद्योग की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है, इसी तरह चीनी मिलें गन्ने की खोई (बगास) का इस्तेमाल बायो-क्रॉकरी साथ कई चीजों में इस्तेमाल कर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं. अयोध्या के रहने वाले वेद कृष्ण जिनकी यश पक्का कंपनी है हर साल दो लाख टन से अधिक गन्ने के खोई का प्रसंस्करण करते हैं. इससे वे इको फ्रेंडली सामान बनाते हैं. आज इनका दायरा उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब से लेकर मिस्र और मैक्सिको जैसे देशों तक फैला हुआ है. वहीं, इनका सालाना टर्नओवर करीब 300 करोड़ रुपये है.