जैतून हरे और भूरे रंग के शरीर पर दो धारी वाली सजावटी मछली इंडिगो बार्ब (पेथिया सेटनाई) की डिमांड ना सिर्फ देश में बल्कि इंटरनेशन मार्केट में भी है. हर किसी की चाहत होती है कि उसके एक्वेरियम में दूसरी सजावटी मछलियों के साथ-साथ इंडिगो बार्ब जरूर हो. लेकिन अब इसकी कमी खलने लगी है. डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम होने की वजह से बाजार में इसकी कोई कीमत तय नहीं है. अगर इंडिगो बार्ब के बीज (सीड) की बात करें तो तीन डॉलर यानि 270 से 300 रुपये तक का आता है. लेकिन बात वही कि बाजार में उपलब्ध होना चाहिए.
इंडिगो बार्ब की खूबसूरती ने ही उसे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में पहुंचाया है जहां लुप्त हो रहीं मछलियों की डिटेल दी गई है. लेकिन अब केरल फिशरीज यूनिवर्सिटी इंडिगो बार्ब के कुनबे को बढ़ाने का काम कर रही है. यूनिवर्सिटी ने आर्टिफिशल इंसेमीनेशन (एआई) की मदद से इंडिगो बार्ब की कैप्टिलव ब्रीडिंग (नियंत्रित प्रजनन) कराने में सफलता हासिल की है.
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फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो मूल रूप से भारतीय इंडिगो बार्ब कर्नाटक और गोवा के मीठे पानी में पाई जाती है. केरल फिशरीज यूनिवर्सिटी ने भी गोवा से इंडिगो बार्ब लेकर अपनी रिसर्च पूरी की है. यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अनवर अली ने इस रिसर्च को पूरा किया है. रिसर्च के तहत इंडिगो बार्ब को बनाए गए तालाब में रखा गया. फिर एआई तकनीक की मदद से प्रजनन कराया गया. इस दौरान सजावटी बार्ब तालाब में रही. इतना ही नहीं आउटडोर और इनडोर दोनों ही वातावरण के तालाबों में इसे रखा गया.
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यूनिवर्सिटी की ये रिसर्च पूरी तरह से कामयाब रही है. जल्द ही इस रिसर्च की तकनीक दूसरे लोगों को देकर इंडिगो बार्ब की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. अनवर अली का मानना है कि इस कामयाबी से गोवा और कर्नाटक ही नहीं देश के दूसरे राज्यों में भी मछलियों की हैचरी चलाने वालों को बड़ा फायदा होगा और सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिलेगा.