पहाड़ों की खूबसूरती और प्रकृति से जुड़ा प्रदेश उत्तराखंड अपने तीज-त्योहारों, लोक पंरपराओं, लोक पर्वों के लिए विश्व विख्यात है. यहां मनाए जाने वाले लोक पर्वों में प्रकृति के प्रति अनूठा प्रेम दिखता है. जहां मैदानी इलाकों में 4 जुलाई से ही सावन शुरू हो गया था, वहीं उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन मास की शुरुआत मानी जाती है. पहाड़ों में 17 जुलाई से सावन शुरू होगा. सावन महीने में हरेला पर्व का विशेष महत्व है, क्योंकि सावन भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है. दरअसल हरेला पर्व का औपचारिक शुभारंभ आज यानी रविवार 16 जुलाई से हो गया है. वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री आवास परिसर में अपनी पत्नी के साथ पौधरोपण किया.
उन्होंने आम की पूषा श्रेष्ठ प्रजाति का पौधा लगाया इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला प्रकृति के संरक्षण और संवर्द्धन का पर्व है. हरेला पर्व के उपलक्ष्य में प्रदेश में सामाजिक संगठनों, संस्थाओं और विभागों के माध्यम से व्यापक स्तर से पौधरोपण किया जाएगा.
हरेला पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रायपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के निकट भी पौधरोपण किया. वहीं उत्तराखंड वन विभाग की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में पहले दिन 500 पौधे रोपे गए. वन विभाग ने इस बार कैंपा योजना के तहत प्रदेश में करीब 15 हेक्टेयर वन भूमि पर 1.29 करोड़ पौधे रोपने का लक्ष्य रखा है, इसमें अधिक से अधिक संख्या में फलदार पौधे लगाए जाएंगे.
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दरअसल इस दौरान वन विभाग के प्रत्येक सेक्शन (वन बीट) में तीन से पांच हेक्टेयर वन भूमि पर एक-एक हरेला वन विकसित किया जाएगा. इसके अलावा आजादी के 75वें वर्ष में 15 सौ गांवों में 75-75 पौधे रोपे जाएंगे. प्रत्येक सेक्शन में दो से ढाई हजार पौधे लगाए जाएंगे. यह अभियान 15 अगस्त तक चलेगा.
उत्तराखंड अपने तीज-त्योहारों, लोक पंरपराओं, लोक पर्वों के लिए विश्व विख्यात है. यहां मनाए जाने वाले लोक पर्वों में प्रकृति के प्रति अनूठा प्रेम दिखता है. वहीं प्रकृति से प्रेम करना सिखाता हैं. प्रकृति से जुड़ा एक ऐसा ही त्योहार हरेला पर्व है. उत्तराखंड के लोक पर्वों में से एक हरेला को गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. वैसे तो हरेला सालभर में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन इनमें सबसे विशेष महत्व रखने वाला हरेला पर्व सावन माह के पहले दिन मनाया जाता है. पहादरअसल लोक परंपराओं के अनुसार, पहले के समय में पहाड़ के लोग खेती पर ही निर्भर रहते थे.
इसलिए सावन का महीना आने से पहले किसान ईष्टदेवों और प्रकृति मां से बेहतर फसल की कामना और पहाड़ों की रक्षा करने का आशीर्वाद मांगते थे. वहीं मान्यता है कि घर में बोया जाने वाला हरेला जितना बड़ा होगा, पहाड़ के लोगों को खेती में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा.