जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी यानी जीईएसी द्वारा जीएम सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले इसके बीज उत्पादन को मंजूरी देने के बाद इस मसले पर बहस जारी है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है तो दूसरी ओर वैज्ञानिक समुदाय और सिविल सोसायटी भी जीएम सरसों को लेकर दो धड़े में बंट गए हैं. इस विवाद के बीच मधुमक्खी पालन उद्योग की अगुवाई करने वाले ‘कंफेडेरशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री (CAI) ने इस फैसले को ‘स्वीट रेवोल्युशन’ (मधु क्रांति) के लिए बेहद घातक बताया है. संगठन ने जीएम मस्टर्ड से मधुमक्खियों के कम होने का अंदेशा जताया है. जिससे मीठी क्रांति प्रभावित होगी. ऐसे में जीएम सरसों के ट्रॉयल को रुकवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई है.
सीएआई के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने किसान तक से बातचीत में कहा कि मधुमक्खियों की संख्या कम हुई तो सृष्टि पर संकट आ जाएगा. क्योंकि फसल उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा. वो देश भर में मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग देते हैं. उन्होंने कहा कि सरसों बीज के बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो जाने का भी खतरा है. जो बाद में किसानों के साथ मनमानी कर सकती हैं. ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री से जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों के ट्रायल को रोकने की मांग की है. ताकि लाखों किसानों और मधुमक्खी पालकों की रोजी रोटी न छिने.
मधुमक्खी पालन उद्योग संगठन के अध्यक्ष ने कहा कि ठंड के मौसम में होने वाली सरसों की फसल के लिए कोई कीटनाशक इत्यादि का छिड़काव की आवश्यकता नहीं होती. मधुमक्खियों के परागण के गुण के कारण शहद के साथ-साथ सरसों का उत्पादन खुद ब खुद बढ़ेगा. ऐसे में जीएम सरसों की कोई भूमिका नहीं रह जाती है. मधुमक्खियों के परागण के गुण और खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण भूमिका के संदर्भ में शर्मा ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन के वक्तव्य को रेखांकित किया. जिसमें आइंसटीन ने कहा है कि इस पृथ्वी पर यदि मधुमक्खियां खत्म हो जाएं तो पूरी मानव सभ्यता तीन से चार वर्षो में खत्म हो जाएगी. मधुमक्खियां पेड़ पौधों के पराग कणों को एक पौधों से दूसरे पौधों तक पहुंचाने में मदद करती हैं, जिससे फल, अनाज और बीजों की उत्पत्ति होती है.
यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित विभिन्न देशों में भारत के गैर-जीएम सरसों के शहद की भारी मांग है, जिससे हमें अच्छी खासी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है. लेकिन जीएम सरसों आने के बाद हमें जर्मनी स्थित प्रयोगशाला में अपने शहद का जीवाणुरोधी, कीटनाशक न होने के परीक्षण के साथ साथ ‘गैर-जीएम सरसों से प्राप्त शहद’ का परीक्षण कराना अनिवार्य होगा. जो काफी महंगा है. शहद के एक लॉट के एक नमूने का खर्च 25,000 रुपये आएगा जिससे लागत बढ़ेगी. सीएआई ने मधुमक्खी पालक किसानों के साथ भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान केंद्र के निदेशक पीके राय के माध्यम से प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा.
ज्ञापन में उनसे इस मामले में हस्तक्षेप कर जीएम सरसों लाने के प्रयास को पूरी तरह से रोकने की मांग की. शर्मा ने कहा कि सरसों ऐसी फसल है जो लगभग 80 प्रतिशत शहद उत्पादन के लिए जिम्मेदार है. हाइब्रिड और जीएम बीजों के कारण शहद का उत्पादन बहुत कम होगा. उन्होंने कहा कि जीएम सरसों से खाद्य तेलों की आत्मनिर्भरता का प्रयास प्रभावित होगा. क्योंकि इससे मधुमक्खियों की को प्रभावित होने की आशंका है. यही नहीं ‘मधु क्रांति’ (स्वीट रेवोल्युशन) का लक्ष्य और विदेशों में भारत के गैर-जीएम शहद की भारी निर्यात की मांग को भी धक्का लगेगा.
शर्मा ने कहा कि हमारे यहां पहले सूरजमुखी की अच्छी पैदावार होती थी और बहुत कम मात्रा में इसका इंपोर्ट करना होता था. लेकिन, जब से सूरजमुखी के संकर किस्म के बीज बाजार में आए हैं तब से देश में इसकी पैदावार बहुत कम हो गई है. अब पूरा का पूरा सूरजमुखी तेल रूस और यूक्रेन से इंपोर्ट किया जा रहा है. जीएम आने के बाद यही हाल सरसों का भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन के काम में राजस्थान, यूपी, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, बिहार, जम्मू, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लगभग 20 लाख लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.
शर्मा ने कहा कि जीएम सरसों से जैव विविधता खतरे में पड़ सकती है. उत्तर भारत के लगभग तीन करोड़ परिवार सरसों खेती से जुड़े हैं. देश के कुल सरसों उत्पादन में अकेले राजस्थान का योगदान करीब 50 परसेंट है. जीएम सरसों का सबसे बड़ा नुकसान तो देश में खुद सरसों को ही होगा. इस समय किसान खेती के बाद अगले साल के लिए बीज बचा लेते हैं, लेकिन जीएम सरसों के बाद ऐसा करना संभव नहीं रहेगा. किसानों को हर बार नए बीज खरीदने होंगे, जिससे उनकी खेती की लागत बढ़ जाएगी.
जीएम सरसों को कीटरोधक बताया जा रहा है तो मधुमक्खियां भी तो एक कीट ही हैं. जब मधुमक्खियां जीएम सरसों के खेतों में नहीं जा पाएंगी तो फिर वे पुष्प रस (नेक्टर) और परागकण (पोलन) कहां से लेंगी? अभी तक जो हमारा अनुभव रहा है कि सरसों के संकर बीज से परागकण और शहद कम प्राप्त होते हैं. हमारी कोशिश होती है कि जहां संकर बीज हों वहां हम मधुमक्खियों की कॉलोनी न लगाएं. क्योंकि इससे तो हमारी मधुमक्खियां ही खत्म हो जाएंगी.