देश में चीनी के बढ़ते दामों के बीच केंद्र सरकार ने बीते गुरुवार को एक अहम फैसला लिया है. चीनी के दामों में नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार ने देश की शुगर मिल्स को निर्देशित किया है कि वे इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने के रस का इस्तेमाल ना करें. ये पूरी कवायद इसलिए है कि मौजूदा वक्त में शुगर मिल्स गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने लगी हैं, वे गन्ने के रस का प्रयोग चीनी बनाने के लिए ही करें, इससे देश में पर्याप्त चीनी उत्पादन सुनिश्चित हो सके.
खैर इस फैसले के पीछे का मुख्य उद्देश्य देश में चीनी का पर्याप्त उत्पादन सुनिश्चित रखते हुए दाम नियंत्रित रखने का है, लेकिन ये फैसला तब हुआ है, जब भारत में इथेनॉल को वैकल्पिक ईंधन के तौर पर देखा जा रहा है. इसी कड़ी में भारत सरकार साल 2018 में राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018 लेकर आई है, जिसके तहत पेट्रोल में 80 फीसदी तक इथेनॉल के सम्मिश्रण की योजना है.
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मसलन, 2030 तक 20 फीसदी इथेनॉल का सम्मिश्रण पेट्रोल में करने का लक्ष्य रखा गया है और मौजूदा साल में 12 फीसदी सम्मिश्रण के लक्ष्य को भारत सरकार ने प्राप्त कर लिया है. ऐसे में सवाल ये है कि जब गन्ने के रस से बन रहे इथेनाॅल की ताकत से एनर्जी सेक्टर की दिशा बदल जानी है तो गन्ने के साथ क्या खेल हुआ कि भारत सरकार को गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर रोक लगानी पड़ी है.
चीनी उत्पादन में कमी की वजह से भारत सरकार ने गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर रोक लगाने का फैसला लिया है. असल में इस साल देश में चीनी उत्पादन में गिरावट का अनुमान है. चीनी उद्योगों की तरफ से जारी किए अनुमान के मुताबिक चालू पेराई सीजन में चीनी उत्पादन 41 लाख टन तक गिर सकता है. ऐसे में चालू पेराइ सीजन में देश का चीनी उत्पादन 290 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि पिछले सीजन में 331 मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन हुआ था, जबकि देश की चीनी खपत 285 लाख टन है.
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वहीं चीनी उद्योग ने अनुमान जताया कि पिछले साल के स्टाॅक को शामिल किया जाए तो देश के पास 44 लाख टन चीनी का बकाया हो सकता है, जबकि पिछले साल 57 लाख टन था. ऐसे में दोनों ही मोर्चो पर चीनी की कमी सरकार को परेशान कर रही है. इसी कड़ी में सरकार चीनी इंपोर्ट पर बैन पहले ही लगा चुकी है.
शुगर मिल्स बड़ी तेजी से गन्ने के रस यानी चीनी से इथेनॉल बनाने लगी हैं. पिछले साल देश में 44 लाख टन चीनी यानी गन्ने के रस का प्रयोग इथेनॉल बनाने के लिए किया गया था. इस साल 40 लाख टन चीनी से इथेनॉल बनाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन चीनी का स्टाॅक सुनिश्चित करते हुए भारत सरकार ने गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर रोक लगा दी है.
भारत सरकार ने गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर जाे राेक लगाई है, उसका मुख्य विलेन अल नीनो है. असल में अल नीनो की वजह से मॉनसून सीजन में बारिश के असमान वितरण ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने के उत्पादन को प्रभावित किया है. इस वजह से चीनी उत्पादन मे गिरावट होने का अनुमान जारी किया गया है. चीनी उद्योग संगठन की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन 85 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 105 लाख टन था, इस तरह महाराष्ट्र में 20 फीसदी चीनी उत्पादन गिरने का अनुमान है.
वहीं कर्नाटक में सबसे अधिक 36 फीसदी चीनी उत्पादन में गिरावट का अनुमान है. पिछले साल कर्नाटक में चीनी उत्पादन लगभग 60 लाख टन चीनी उत्पादन हुआ था, जो इस साल 38 लाख टन रह सकता है.
हालांकि यूपी में मॉनसून सीजन में हुई बेहतर बारिश की वजह से गन्ने का उत्पादन बेहतर रहने का अनुमान है. इस वजह से इस साल 110 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान जारी किया गया है, जो पिछले साल 105 लाख टन था.
जानकारी के मुताबिक गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर रोक लगाने के पीछे चीनी उत्पादन और स्टाॅक में कमी तो मुख्य कारण है, लेकिन शुगर मिल्स का बदला ट्रेंड भी इसकी एक वजह है. जानकारी बताते हैं कि इथेनॉल बनाने से शुगर मिल्स को बेहतर कमाई हो रही हैं. पेट्रो कंपनियां समय पर भुगतान कर रही हैं. तो इससे होने वाली आमदनी से शुगर मिल्स की बैलेंस शीट भी सुधर रही है. मसलन, कई शुगर मिल्स का घाटा लगातार कम हो रहा है तो कई शुगर मिल्स वापिस पटरी पर लौटी हैं. तो सबसे बड़ी बात की किसानों को गन्ने का जल्दी भुगतान करने में भी इथेनॉल मददगार साबित हो रहा है. ऐसे में शुगर मिल्स अधिक से अधिक गन्ने के रस से इथेनॉल बनाना चाहती हैं, जिसका असर चीनी उत्पादन पर पड़ने की आशंका है, इसके मद्देनजर इस तरह के आदेश की जरूरत पड़ी है.
भारत सरकार ने गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने पर रोक लगाई है, लेकिन आदेश में स्पष्ट किया है कि शुगर मिल्स सीरे (Molasses) से इथेनॉल बना सकते हैं. यहां पर ये बताना जरूरी है कि गन्ने की पेराई से रस निकलता है और रस से चीनी या गुड़ बनाते समय जो लक्विंड निकलता है, उसे सीरा कहा जाता है, जो शराब बनाने में भी प्रयोग होता है.
गन्ने से इथेनॉल बनने की कहानी को समझने के लिए हमें गन्ने का गुण समझना होगा. गन्ने में सुक्राेज पाया जाता है, जो चीनी बनाने में महत्वपूर्ण है. इसी गुण की वजह से गन्ने से इथेनॉल बनाया जाता है. सीधे से शब्दों से कहें तो इथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है, जो गन्ने के रस से प्राप्त होता है. इथेनॉल बनने की कहानी को समझा जाए तो गन्ने से रस को इकट्टा कर उसे विशेष प्रक्रिया के माध्यम से इथेनॉल में बदला जाता है.
भारत सरकार ने 2025-26 तक पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य 20 फीसदी रखा है. इसके लिए भारत सरकार को 1016 करोड़ लीटर इथेनॉल की जरूरत है. वहीं देश के अंदर इथेनॉल उत्पादन की क्षमता की बात करें तो वर्तमान में ही 1364 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन की क्षमता यूपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक की शुगर मिल्स में है. हालांकि इसके लिए चुनौती ये ही है कि भारत सरकार चीनी का पर्याप्त स्टाॅक सुनिश्चित करते हुए अधिक चीनी यानी गन्ने के रस का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने की तरफ करे, लेकिन असली चुनौती यहीं से शुरु होती है. मौजूदा वक्त में देश के अंदर चीनी का पर्याप्त स्टॉक नहीं है, जो सरकार के लिए चुनौती की तरह है.