हाल की में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार के शुरुआती संकेत दिखाई दे रहे हैं. एम्बिट एसेट मैनेजमेंट फर्म की इस रिपोर्ट के मुताबिक इसके पीछे मानसून सीजन की मजबूत शुरुआत, मुद्रास्फीति में कमी के कारण ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि और व्यापक सरकारी खर्च से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिला है. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि इन सकारात्मक घटनाक्रमों से ग्रामीण मांग में वृद्धि, कृषि उत्पादकता में सुधार और आगामी तिमाहियों में समग्र आर्थिक विकास को भी गति मिलने की उम्मीद है.
इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जैसे-जैसे हम वित्त वर्ष 26 की ओर बढ़ रहे हैं, सकारात्मक संकेत उभर रहे हैं. मानसून सीज़न की मज़बूत शुरुआत, ग्रामीण मज़दूरी में पुनरुत्थान (मुद्रास्फीति में कमी से प्रेरित) और ज़्यादा सरकारी खर्च व्यापक ग्रामीण सुधार के लिए ज़मीन तैयार कर रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 26 में मानसून की शुरुआत अच्छी रही है और जून में बारिश दीर्घावधि औसत (एलपीए) की 105 प्रतिशत रही. पिछले वर्षों के विपरीत, जिसमें अनियमित पैटर्न देखने को मिले थे, इस साल अधिक समान और समय पर वर्षा वितरण देखा गया है. इससे दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की बुवाई को फायदा होगा. इस बार जुलाई के अंत तक खरीफ की बुवाई साल-दर-साल 8 प्रतिशत आगे चल रही है.
सालों के ठहराव के बाद, ग्रामीण मज़दूरी (कृषि और गैर-कृषि दोनों) में सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं. घटती मुद्रास्फीति और सरकारी बुनियादी ढांचे, जैसे - सड़क, आवास, जल जीवन मिशन, को बढ़ावा मिलने से, वित्त वर्ष 2025 के मध्य में वास्तविक मजदूरी में सकारात्मक वृद्धि रही. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मनरेगा की मांग भी कम हो रही है, जो रोजगार की उपलब्धता में सुधार का संकेत है. खास बात है कि वेतन वृद्धि में यह तेजी ग्रामीण तरलता को बढ़ावा दे रही है और घरेलू बचत को फिर से बनाने में मदद कर रही है. इससे FMCG, टिकाऊ वस्तुओं और कम लागत वाली दोपहिया पर ज़्यादा खर्च संभव हो रहा है.
पिछले 3 साल ग्रामीण भारत के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहे हैं, जिनमें मजदूरी में स्थिरता, एफएमसीजी, खुदरा और दोपहिया जैसे क्षेत्रों में कमजोर मांग और कोविड-19 महामारी के लंबे समय तक बने रहने वाले प्रभाव शामिल हैं. उस दौरान रिवर्स माइग्रेशन ने ग्रामीण रोजगार को बाधित कर दिया था और इनपुट लागत (उर्वरक, डीजल, कीटनाशक) बढ़ने से कृषि संकट और भी बढ़ गया था.
कोरोना महामारी ने ग्रामीण भारत पर गहरा असर डाला है. बढ़ती मुद्रास्फीति, स्थिर मजदूरी और सुस्त मांग ने घरेलू बचत और खपत पर काफी असर डाला है. 2020 और 2023 के बीच, ग्रामीण मुद्रास्फीति बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई थी. इसकी वजह अनियमित मानसून, बेमौसम प्राकृतिक घटनाएं और बढ़ती लागत से कृषि संकट गहरा गया था.
इस दौरान कृषि आय में कमी आई क्योंकि कई फसलों के बाजार मूल्य कम रहे, जबकि डीजल और उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं. एफएमसीजी सेक्टर, जिसे ग्रामीण मांग का प्रमुख बैरोमीटर माना जाता है, उसमें वित्तीय वर्ष 2020 और वित्त वर्ष 24 के बीच आय में उल्लेखनीय मंदी देखी गई थी. कृषि-इनपुट क्षेत्र - जिसमें उर्वरक, फसल सुरक्षा रसायन और बीज शामिल हैं - पिछले कुछ सालों से आय के दबाव में रहा है, जो ग्रामीण भारत में व्यापक तनाव को दर्शाता है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 24 के बीच कई कंपनियों की आय वृद्धि काफी धीमी हो गई, क्योंकि वे कमजोर कृषि आय, अनियमित मानसून, इनपुट लागत मुद्रास्फीति और इन्वेंट्री डिस्टॉकिंग से प्रभावित थीं. ग्रामीण आवास, जो उपभोग, रोजगार और निर्माण सामग्री की मांग को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक है, उसमें वित्त वर्ष 20-24 के दौरान स्पष्ट मंदी देखी गई थी.
(सोर्स- ANI)
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