हाल ही में आई बाढ़ के कारण पंजाब के कई जिलों- अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, कपूरथला और पटियाला- की खेतों में मोटी परत में लाल रेत और सिल्ट जम गई है. यह रेत हिमालय की तलहटी से आई है और अब स्थानीय मिट्टी के साथ मिलकर एक ऐसी परत बना रही है जिससे न तो पानी जमीन में आसानी से सोख पा रहा है और न ही पौधों की जड़ें ठीक से फैल पा रही हैं.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के वाइस-चांसलर सतबीर सिंह गोसल के अनुसार, यह नई परत खेत की उर्वरता को प्रभावित कर सकती है. खासतौर पर गेहूं की बुवाई, जो आने वाले 2-3 हफ्तों में शुरू होती है, उसमें देरी हो सकती है. लाल रेत में पोषक तत्व नहीं होते, जिससे फसल की पैदावार पर असर पड़ सकता है.
अध्ययन में यह पाया गया कि अधिकांश सैंपलों में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.75% से ज्यादा थी, लेकिन जिन खेतों में भारी रेत थी, वहां यह मात्रा कम पाई गई.
PAU ने किसानों को सलाह दी है कि वे खेत की मिट्टी को संतुलित और उपजाऊ बनाए रखने के लिए इन उपायों को अपनाएं:
डॉ. मखन सिंह भुल्लर ने किसानों से अपील की है कि वे पराली न जलाएं, बल्कि उसे मिट्टी में मिला दें. इससे मिट्टी की बनावट सुधरेगी और पोषक तत्व भी मिलेंगे.
बाढ़ के बाद की यह स्थिति पंजाब की खेती के लिए एक चेतावनी है. समय रहते मिट्टी की देखभाल और संतुलन जरूरी है ताकि आने वाली रबी फसल- खासकर गेहूं- की पैदावार प्रभावित न हो. किसानों को विशेषज्ञों की सलाह मानकर प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करना होगा.
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