24 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है पंचायती राज दिवस, जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

24 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है पंचायती राज दिवस, जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि अगर देश के गांवों को खतरा पैदा हुआ तो पूरे भारत को खतरा पैदा हो जाएगा. इसके लिए उन्होंने सशक्त और मजबूत गांवों का सपना देखा था. इसी सपने को पूरा करने के लिए 1992 में संविधान में 73वां संशोधन किया गया और पंचायती राज संस्थान का कॉन्सेप्ट पेश किया गया.

24 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है पंचायती राज दिवस, फोटो साभार: twitter24 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है पंचायती राज दिवस, फोटो साभार: twitter
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Apr 23, 2023,
  • Updated Apr 23, 2023, 1:37 PM IST

ऐसा कहा जाता है कि भारत का दिल उसके गांवों में बसता है और देश की पहचान उसके गांवों से ही होती है. भारत में तकरीबन छह लाख से अधिक गांव हैं. जो छह हजार से अधिक ब्लॉक और 750 से अधिक जिलों में बंटे हुए हैं. भारत एक लोकतांत्रिक देश है. इस देश को सिर्फ केंद्र सरकार या राज्य सरकार ही पूरे तरीके से चलाने में सक्षम नहीं है. क्योंकि देश को हर स्तर पर चलाने के लिए व्यवस्था की जरूरत होती है. इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रशासन की व्यवस्था की गई है. इसी व्यवस्था को पंचायती राज का नाम दिया गया है.

पंचायती राज में गांव के स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होता है. इन सभी संस्थानों के लिए सदस्यों का चुनाव होता है जो जमीनी स्तर पर शासन की बागडोर संभालते हैं.

कब मनाया जाता है पंचायती राज दिवस 

पंचायती राज दिवस 24 अप्रैल को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 2010 की गई है. यह दिन 1992 में संविधान के 73 वें संशोधन के अधिनियम का प्रतीक है. इस ऐतिहासिक संशोधन के जरिए जमीनी स्तर की शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया गया और पंचायती राज नाम की एक संस्था की बुनियाद रखी गई. पंचायती राज मंत्रालय हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाता है.

कैसे हुई पंचायती राज की शुरुआत

पंचायती राज व्यवस्था का जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है. रिपन ने 1882 में स्थानीय संस्थाओं को उनका लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान किया था. सबसे पहले राजस्थान में ये व्यवस्था लागू की गई थी. देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि अगर देश के गांवों को खतरा पैदा हुआ तो पूरे भारत को खतरा पैदा हो जाएगा. इसके लिए उन्होंने सशक्त और मजबूत गांवों का सपना देखा था, क्योंकि वो मानते थे कि गांव देश की रीढ़ की हड्डी होती है. उन्होंने ग्राम स्वराज का कॉन्सेप्ट दिया था. उन्होंने कहा था कि पंचायतों के पास सभी अधिकार होने चाहिए.

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इसी सपने को पूरा करने के लिए 1992 में संविधान में 73वां संशोधन किया गया और पंचायती राज संस्थान का कॉन्सेप्ट पेश किया गया. इस कानून की मदद से स्थानीय निकायों को अधिक से अधिक शक्तियां दी गईं. उनको आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की शक्ति और जिम्मेदारियां भी दी गईं.

कैसे चलता है पंचायती राज

पंचायत शब्द दो शब्दों 'पंच' और 'आयत' के मेल से बना है. पंच का अर्थ है पांच और आयत का अर्थ है सभा. पंचायत को पांच सदस्यों की सभा कहा जाता है जो स्थानीय समुदायों के विकास और उत्थान के लिए काम करते हैं और स्थानीय स्तर पर कई विवादों का निवारण करते हैं. जब पंचायती राज की शुरुआत हुई तब उन दिनों में एक सरपंच पूरे पंचायत या गांव का सर्वाधिक सम्मानित व्यक्ति होता था. सरपंच अपने पंचायत मे होने वाली सभी समस्याओं का निवारण करता था. हर कोई उसकी बात सुनता था. यानी पंचायत के स्तर पर सरपंच में ही सारी शक्तियां होती थीं. लेकिन, समय बदलता गया और बदलाव आते गए.

अब ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तरों पर चुनाव होता है और सभी के लिए प्रतिनिधियों को चुना जाता है. साथ ही इसमें अब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए पंचायत चुनाव में आरक्षण होता है. अब पंचायती राज संस्थानों को कई तरह की शक्तियां दी गई हैं ताकि वे सक्षम और अच्छे तरीके से काम कर सकें.

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