Sheep: बकरीद पर बिकने वाली खास मुजफ्फरनगरी भेड़ की ऐसे करें पहचान

Sheep: बकरीद पर बिकने वाली खास मुजफ्फरनगरी भेड़ की ऐसे करें पहचान

दक्षिण भारत के कई राज्यों समेत जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. हालांकि ज्यादा बकरे की ही कुर्बानी होती है. नॉर्थ इंडिया के कुछ राज्यों  में भी भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के लिए और मीट के लिए इस मौके पर मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ ही पसंद की जाती है. 

नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Jun 12, 2024,
  • Updated Jun 12, 2024, 12:44 PM IST

मुजफ्फरनगरी भेड़ों की एक खास और पुरानी नस्ल है. इस भेड़ को खासतौर पर मीट के लिए ही पाला जाता है. 44 तरह की नस्ल के बीच यह एक ऐसी नस्ल की भेड़ है जिसका वजन भी सबसे ज्यादा होता है. ऐसा भी नहीं है कि इसके शरीर पर ऊन नहीं होती है. लेकिन जिस तरह की ऊन इसके शरीर से मिलती है वो गलीचे और दूसरे काम में नहीं आती है. मीट के लिए ये नस्ल बहुत पसंद की जाती है. खासतौर से दक्षिण भारत के कुछ राज्यों और जम्‍मू-कश्मीर में इसका मीट बहुत पसंद किया जाता है. 

बकरीद पर कुर्बानी के लिए भी मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ ही ज्या‍दातर खरीदी जाती हैं. बकरीद में अभी करीब दो महीने का वक्त, बाकी है. लेकिन बकरीद पर दी जाने वाली बकरे और भेड़ की कुर्बानी के लिए खरीदारी शुरू हो गई है. यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कई जगह पर भेड़ की कुर्बानी दी जाती है.

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मीट में इसलिए पसंद की जाती है यह भेड़ 

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास ने किसान तक को बताया कि मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट में चिकनाई (वसा) बहुत होती है. जिसके चलते हमारे देश के ठंडे इलाके हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट को बहुत पसंद किया जाता है. इसके अलावा आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना में क्योंकि बिरयानी का चलन काफी है तो चिकने मीट के लिए भी इसी भेड़ के मीट की डिमांड रहती है. जानकार बताते हैं कि चिकने मीट की बिरयानी अच्छी बनती है.

मुजफ्फरनगरी भेड़ खरीदने जा रहे हैं तो ऐसे करें पहचान 

डॉ. गोपाल दास ने बताया कि अगर आप मुजफ्फरनगरी भेड़ खरीद रहे हैं तो उसकी पहचान कुछ खास तरीकों से की जा सकती है. देखने में इसका रंग एकदम सफेद होता है. पूंछ लम्बी होती है. 10 फीसद मामलों में तो इसकी पूंछ जमीन को छूती है. कान लम्बे होते हैं. नाक देखने में रोमन होती है. मुजफ्फरनगर के अलावा बिजनौर, मेरठ और उससे लगे इलाकों में खासतौर पर पाई जाती है. 

इन खास वजहों से भी पाली जाती है ये भेड़ 

डॉ. गोपाल दास ने यह भी बताया कि मुजफ्फरनगरी भेड़ हार्ड नस्ल की मानी जाती है. इसीलिए इस नस्ल में मृत्यु दर सिर्फ दो फीसद ही है. जबकि दूसरी नस्ल की भेड़ों में इससे कहीं ज्याादा है. इसके बच्चे चार किलो तक के होते हैं. जबकि दूसरी नस्ल के बच्चे 3.5 किलो तक के होते हैं. अन्य नस्ल की भेड़ों से हर साल 2.5 से 3 किलो ऊन मिलती है. जबकि मुजफ्फरनगरी भेड़ 1.2 किलो से लेकर 1.4 किलो तक ही ऊन हर साल देती है.

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छह महीने में मुजफ्फरनगरी का वजन 26 किलो हो जाता है. जबकि अन्ये नस्ल में 22 या 23 किलो वजन होता है. 12 महीने की मुजफ्फरनगरी का वजन 36 से 37 किलो तक हो जाता है. वहीं अन्य नस्ल की भेड़ इस उम्र पर सिर्फ 32 से 33 किलो वजन तक ही पहुंच पाती हैं. इसके बच्चे जल्दी‍ बड़े होते हैं. दूसरी नस्लों की तुलना में मुजफ्फरनगरी भेड़ भी बकरियों के साथ पाली जा सकती है.
 

 

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