पोषण की कमी से जूझ रहे भारतीय, बायोफोर्टिफाइड फसलों की जरूरत! किसानों के लिए सुनहरा अवसर?

पोषण की कमी से जूझ रहे भारतीय, बायोफोर्टिफाइड फसलों की जरूरत! किसानों के लिए सुनहरा अवसर?

स्‍वाद और शक की वजह से फोर्टिफाइड चावल का विरोध होता रहा है. इस बीच सरकार से लेकर वैज्ञानिक बायोफोर्टिफाइड फसलों को इसका विकल्‍प देख रहे हैं, जो वक्‍त की जरूरत है.

बायोफोर्टिफाइड फसलें बनी वक्‍त की जरूरत, किसानाें के लिए बनेंगी फायदे का सौदाबायोफोर्टिफाइड फसलें बनी वक्‍त की जरूरत, किसानाें के लिए बनेंगी फायदे का सौदा
मनोज भट्ट
  • Noida ,
  • Aug 31, 2024,
  • Updated Aug 31, 2024, 12:06 PM IST

भारतीय पोषण की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं. द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल की नई स्‍टडी के मुताबिक भारतीयों में आयरन, कैल्‍शियम और फोलेट की कमी है. स्‍टडी रिपोर्ट ये कहती है कि भारतीयों को आयरन, कैल्‍शियम और फोलेट की खुराक नहीं मिल पा रही है, जबकि किसी भी व्‍यक्‍ति को संपूर्ण पोषण यानी स्‍वथ्‍य रहने के लिए इन पोषक तत्‍वों की आवश्‍यकता होती है. बेशक, देश के लिए ये चिंता का विषय है. मसलन, ये विषय पोषण की कमी से जूझ रहे भारत को रेखांकित करता है, जिससे निपटने के लिए आवश्‍यकदम उठाने की जरूरत है, लेकिन ये किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है.

कुल जमा आने वाले वक्‍त बायोफोर्टिफाइड फसलों का है, जो आम भारतीयों के लिए पोषण की खुराक बन सकती हैं. तो वहीं किसानों के लिए भी बढ़िया इनकम का माध्‍यम. आज की बात इसी पर जानेंगे कि लैंसेट की स्‍टडी रिपोर्ट क्‍या कहती है. क्‍यों कहा जा रहा है कि बायोफोर्टिफाइड फसलें वक्‍त की जरूरत बनने वाली हैं. बायोफोर्टिफाइड फसलें होती क्‍या हैं? साथ ही जानेंगे कि कैसे किसानाें के लिए ये एक सुनहरा अवसर हैं. 

लैंसेट की रिपोर्ट में क्‍या? 

हावर्ड यूनिवर्सिटी की अगुवाई में ये स्‍टडी की गई है. जिसमें 185 देशाें के लोगों के खाने का अध्‍ययन करने के बाद द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में ये रिपोर्ट प्रकाशित की गई है. ये रिसर्च आधारित स्‍टडी रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की बड़ी आबादी अनाज या सामान्‍य खुराक से 15 तरह के आवश्‍य सूक्ष्‍म पोषक तत्‍व प्राप्‍त नहीं कर पा रही है. इस वजह से इन पोषक तत्‍वों की कमी उनके शरीर में नहीं है. इन हालातों में बड़ी आबादी को अलग से पूरक आहार (सप्‍लीमेंट्स) लेने पड़ते हैं.

रिसर्च आधारित ये स्‍टडी कहती है कि दुनिया भर में 5 अरब से अधिक लोग आयोडीन, विटामिन ई और कैल्शियम का सेवन नहीं करते हैं, जबकि भारत में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में कम आयोडिन लेती हैं तो महिलाओं की तुलना में पुरुष, जिंंक और मैग्‍नीशियम का कम सेवन करते हैं. 

अनाज कैसे हुआ 'बर्बाद'? क्‍यों पोषण नहीं दे रहा 

अमूमन, दुनियाभर में अनाज से ही किसी भी व्‍यक्‍ति को सूक्ष्‍म से लेकर मुख्‍य पोषक तत्‍व मिलते हैं. ये एक प्राकृतिक और शाश्‍वत सत्‍य है, लेकिन ये भी सच है कि बीते कुछ दशकों में भारत समेत दुनिया भर में उगाए जाने वाले अनाज में पोषक तत्‍वों की कमी दर्ज की गई है. इसके पीछे का मुख्‍य कारण मिट्टी की बिगड़ती हुई सेहत है. भारत के सदंर्भ में देखें तो हरित क्रांति को इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है.

साल 2023 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने हरित क्रांति के बाद अनाजों में पोषण को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया था, जिसकी स्‍टडी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 सालों में भारत के अंदर चावल में जिंंक और आयरन जैसे जरूरी पोषक तत्‍वों की मात्रा में क्रमश: 33 फीसदी और 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि गेहूं में जिंंक और आयरन की मात्रा में क्रमश: 30 फीसदी और 19 फीसदी की गिरावट हुई है.

रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि चावल में जहरीले आर्सेनिक की मात्रा में 1400 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में ये भी चिंता जताई गई कि अगर ऐसे अनाज में पोषक तत्‍वों की कर्मी दर्ज की जाती है तो साल 2040 तक गेहूं और चावल खाने लायक नहीं बचेंगे. ICAR ने वैज्ञानिकों ने अपनी स्‍टडी में पाया था कि हरित क्रांति के बाद अधिक उत्‍पादन लेने के लिए फसलों की नई किस्‍मों के बढ़े प्रयोग, उर्वरकों का अधिक प्रयाेग जैसे कारणों से अनाजों में पोषक तत्‍वों की कमी दर्ज की गई है. इस वजह से पौधे मिट्टी से पूर्ण पोषण प्राप्‍त नहीं कर पाते हैं. 

भारत क्‍या कर रहा है?

कुल जमा भारत में पर्याप्‍त अनाज भंडार होने के बावजूद भी भारत की बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है. इसके पीछे का मुख्‍य कारण भारत में उगने वाले अनाज में कम होते पोषक तत्‍व हैं. इस बात को ध्‍यान में रखते हुए भारत सरकार बड़ी आबादी को पोषण उपलब्‍ध कराने के लिए प्रयासरत है. जिसके तहत 20 से अधिक फसलों की बायोफोर्टिफाइड किस्‍में तैयार की जा चुकी हैं तो वहीं पीडीएस में कई राज्‍यों में फोर्टिफाइड चावल बंटवाया जा रहा है. हालांकि प्‍लास्‍टिक और चीन वाला चावल बता कर फोर्टिफाइड चावल का देश में कई हिस्‍सों में विरोध हो चुका है.

बायोफोर्टिफाइड फसलें क्‍या? वक्‍त की जरूरत क्‍यों?

स्‍वाद और शक की वजह से फोर्टिफाइड चावल का विरोध होता रहा है. इस बीच सरकार से लेकर वैज्ञानिक बायोफोर्टिफाइड फसलों को इसका विकल्‍प देख रहे हैं, जो वक्‍त की जरूरत है. कैसे? इसे समझने से पहले बायोफोर्टिफाइड फसलें क्‍या होती हैं, ये समझते हैं. असल में फोर्टिफाइड फसलों में मिल के अंदर प्राकृतिक रूप से उगे चावल में विशेष प्रक्रिया से पोषक तत्‍व मिलाए जाते हैं. जबकि बायोफोर्टिफाइड फसलों के बीज वैज्ञानिक तैयार करते हैं, जिसमें वैज्ञानिक तरीके से दूसरी फसलों से पोषक तत्‍व लेकर नए बीज तैयार किए जाते हैं, जिन्‍हें बायोफोर्टिफाइड फसलें कहा जाता है.

अब बात करते हैं कि बायोफोर्टिफाइड वक्‍त की जरूरत क्‍यों हैं? इसको लेकर किसान तक ने IARI के वरिष्‍ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ एसपी सिंह से बातचीत की. डॉ सिंह बताते हैं हरित क्रांति देश में अनाज का उत्‍पादन बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी. अब देश में अनाज पर्याप्‍त है, लेकिन पोषण की कमी है. ऐसे में अब अनाजों में पोषण बढ़ाने की जरूरत है, इसका व्‍यवहारिक और सबसे सरल तरीका बायोफोर्टिफाइड फसलें हैं.

उन्‍होंने बताया कि इसको लेकर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. इसी कड़ी में बाजरे की बनाई गई बायोफोर्टिफाइड किस्‍म में आयरन और जिंक की मात्रा बढ़ाई गई है, जबकि मक्‍के में विटामिन ए की मात्रा बढ़ाई गई है. इसी तरह अन्‍य कई फसलों में सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों की मात्रा बढ़ाई गई है. वहीं पीएम की तरफ से जारी की गई 109 किस्‍मों में से भी कई बायोफोर्टिफाइड किस्‍में हैं, जो पोषण सुरक्षा सुनिश्‍चित करती हैं.

किसानों को कैसे मिलेगा फायदा? 

अनाज को लेने का मुख्‍य कारण पोषण ही है. यानी शरीर में पोषण की कमी को पूरा करने के लिए व्‍यक्‍ति अनाज का सेवन करता है, लेकिन सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों की कमी वाला अनाज राष्‍ट्रीय चिंता का कारण बन गया है. हालांकि ये चिंता किसानों के लिए एक अवसर है. जरूरी है कि किसान अब सामान्‍य फसलों की जगह बायोफोर्टिफाइड फसलों की खेती करें. इसको लेकर IARI के वरिष्‍ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ एसपी सिंह से कहते हैं कि बेशक बायोफोर्टिफाइड फसलों की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा होगी. क्‍योंकि सामान्‍य फसलों की तरह ही बायोफोर्टिफाइड फसलों की खेती की जा सकती है.

मसलन, लागत में कोई भी बढ़ाेतरी नहीं  होती है, जबकि उत्‍पादन भी बराबर रहता है. हालांकि वह बायोफोर्टिफाइड फसलों का बाजार अलग से विकसित ना होने तक इसकी खेती करने वाले किसानों को इंसेटिव देने की वकालत करते हैं.

 

MORE NEWS

Read more!