भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (ISMA) ने नई दिल्ली में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) और कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर "भारत में टिकाऊ गन्ना उत्पादन को बढ़ावा देने" पर एक रणनीतिक स्टेकहोल्डर्स ब्रेनस्टॉर्मिंग सत्र आयोजित किया. इस आयोजन में सीनियर सरकारी अधिकारियों, वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और अन्य प्रमुख हितधारकों ने भाग लिया, ताकि गन्ना क्षेत्र के सामने आ रही चुनौतियों का समाधान ढूंढा जा सके और भविष्य के लिए एक स्पष्ट योजना बनाई जा सके. बैठक में इस बात पर आम सहमति बनी कि अब धीमे सुधार से काम नहीं चलेगा. अब एक मिशन आधारित दृष्टिकोण की जरूरत है. राष्ट्रीय गन्ना मिशन के लिए उद्योग के सभी पक्षों से समर्थन मिल रहा है.
बैठक का मुख्य उद्देश्य भारतीय किसानों के जीवन में सुधार लाना और चीनी व जैव-ऊर्जा उद्योग की सतत वृद्धि सुनिश्चित करना था. भारत, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है और यह न केवल एक उपलब्धि है, बल्कि एक जिम्मेदारी भी. यह क्षेत्र 55 मिलियन से अधिक किसानों और श्रमिकों को रोज़गार देता है, देश में 535 चीनी मिलों के माध्यम से हर साल 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करता है. हालांकि, हाल के वर्षों में उत्पादकता में गिरावट, खेती क्षेत्र में कमी और कीट प्रकोप जैसे मुद्दों के चलते किसान और उद्योग दोनों संकट में हैं.
ISMA के अध्यक्ष गौतम गोयल ने सत्र की शुरुआत करते हुए एक छह-सूत्रीय योजना पेश की, जिसमें प्रजातियों में विविधता, जीनोम इनोवेशन, डी-सेंट्रलाइज्ड बीज प्रणाली, जलवायु-स्मार्ट खेती, नीतिगत सुधार और एक राष्ट्रीय गन्ना मिशन की स्थापना की सिफारिश की गई. इस दौरान उन्होंने कहा कि गन्ना उद्योग एक निर्णायक मोड़ पर है. हालिया समस्याएं अलग-अलग घटनाएं नहीं, बल्कि हमें चेतावनी देने वाले संकेत हैं. नई प्रजातियों को बढ़ावा देना, मजबूत बीज प्रणाली बनाना, और हर कोने तक आधुनिक खेती तकनीक पहुंचाना जरूरी है. अगर हम मिलकर काम करें, तो किसान की आय भी बढ़ेगी और उद्योग भी मजबूत होगा.
वहीं, अश्वनी श्रीवास्तव, संयुक्त सचिव (शुगर), खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने ISMA और ICAR-शुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टिट्यूट की साझेदारी को एक प्रभावी उदाहरण बताते हुए कहा कि गन्ना क्षेत्र को मौसम की अनिश्चितता, रोगों और आर्थिक अस्थिरता से चुनौती मिल रही है. लेकिन हमारे पास मजबूत नीति, अग्रणी अनुसंधान संस्थान और मेहनती किसान हैं. बीज और नर्सरी प्रणालियों को मजबूत कर हम किसानों को बेहतर उपज दिला सकते हैं.
ISMA के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने नवाचार और नीति संवाद को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने कहा कि ज्ञान साझा करने के मंच जरूरी हैं, जिससे अच्छे समाधानों को पहचाना और अपनाया जा सके. गन्ने के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा किसानों, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और उद्योग को जोड़ना ही सफलता की कुंजी है. आधुनिक तकनीकों, डिजिटल टूल्स और सिंचाई पद्धतियों को गांव-गांव तक पहुंचाना जरूरी है.
सत्र का संचालन करने वाले ISMA के कृषि उप-समिति के अध्यक्ष रोशन लाल तमक ने चर्चा में बीज की गुणवत्ता, कृषि पद्धतियां, मशीनीकरण, नीतिगत सुधार और डिजिटल तकनीकों के इस्तेमाल पर खास ध्यान दिया. ISMA के उपाध्यक्ष नीरज शिर्गांवकर ने क्लोजिंग स्पीच में कहा कि जो विचार आज सामने आए हैं. जैसे- प्रजातीय विविधता और राष्ट्रीय मिशन, सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक समाधान हैं. हर निर्णय का मूल्यांकन किसानों के जीवन पर प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिए.