बिस्किट बनाने वाली कंपनियों और मिलों को सरकारी भंडार से गेहूं की आपूर्ति करने की तैयारी चल रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के साथ ही रोजाना गेहूं-आटा से बनने खाद्य वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए यह निर्णय लिया गया है. केंद्र सरकार इन मिलों और कंपनियों को अगले महीने से गेहूं बिक्री की शुरूआत करेगी. इसके लिए नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम को अनुमति दी गई है.
गेहूं से बनने वाली बिस्किट जैसी खाद्य वस्तुएं जिनका रोजाना इस्तेमाल किया जाता है, उनकी कीमतें नीचे बनाए रखने के लिए सरकारी भंडार से गेहूं की बिक्री की जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से कहा गया है कि केंद्र सरकार अगले महीने से अपने सरकारी भंडार से आटा मिलों और बिस्किट निर्माताओं को गेहूं बेचने की योजना बना रहा है. क्योंकि सरकार की मंशा आपूर्ति बढ़ाकर स्थानीय कीमतों पर अंकुश लगाना है.
केंद्र ने सरकारी गेहूं खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (FCI) को अगले महीने से अपने भंडार से 23,250 रुपये (279 डॉलर) प्रति टन की दर से गेहूं बेचने की अनुमति दे दी है. यानी यह गेहूं 23.25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाएगा. यह कीमत मौजूदा खुले बाजार की कीमतों से लगभग 12 फीसदी कम है. हालांकि, FCI हर साल खुले बाजार में गेहूं की बिक्री करता है. इस बार अभी तक तय नहीं किया है कि वह खुले बाजार में कितनी मात्रा में गेहूं बेचने की तैयारी कर रहा है.
भारतीय खाद्य निगम ने पिछले साल जून में निजी कंपनियों, फर्म को गेहूं बेचना शुरू किया था. एफसीआई ने मार्च 2024 तक 100 लाख मीट्रिक टन से थोड़ा अधिक गेहूं बेचा था, जो सरकारी भंडार से रिकॉर्ड बिक्री के रूप में दर्ज किया गया था. एफसीआई की आकर्षक कीमतों के चलते इस बार भी कई निजी फर्म और कंपनियां की ओर से बड़ी मात्रा में गेहूं की खरीद करने का अनुमान है.
गेहूं की कीमतों में सालाना आधार पर लगभग 6 फीसदी का उछाल देखा गया है. इसकी वजह लगातार 2022 और 2023 में तेज तापमान की वजह से सूखे की स्थितियों ने फसल उत्पादन को प्रभावित किया, जिससे कीमतों में उछाल आया और केंद्र सरकार को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था. कहा गया कि इस साल सरकारी अनुमान के अनुसार फसल 11.2 करोड़ मीट्रिक टन है जो 6.25 फीसदी कम है. रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 1 जून को 2.9 करोड़ मीट्रिक टन रह गया, जबकि पिछले साल यह 3.14 करोड़ मीट्रिक टन था.