किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिले, इसके लिए केंद्र सरकार को किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की मदद करनी पड़ सकती है. खास तौर पर सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अभी बिचौलियों को मिलने वाला 5-6 फीसदी मुनाफा अब सीधे एफपीओ तक पहुंचे. कृषि मंत्रालय की ओर से 24 अप्रैल को आयोजित वेबिनार में इस मुद्दे को तेजी से उठाया गया. यह वेबिनार कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी की पहल पर शुरू किया गया. वेबिनार में ओलम एग्री कंपनी के प्रवीण सिन्हा ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में इस समय 2600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं खरीद रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर उपज की गुणवत्ता अच्छी होगी तो वे ज्यादा कीमत देने को भी तैयार हैं.
ओलाम के अधिकारियों ने कहा कि एफपीओ से खरीदे गए उत्पाद कभी-कभी गुणवत्ता में कमी रखते हैं, इसलिए कंपनियां अभी भी बिचौलियों से खरीदती हैं. इसके अलावा, अगर एफपीओ सीधे कंपनियों को बेचते हैं, तो उन्हें स्थानीय मंडी शुल्क का भुगतान करना पड़ता है - जो एक बड़ी बाधा है.
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एफपीओ के एक प्रतिनिधि ने सवाल उठाया कि जब उन्हें गांव में ही व्यापारी से समान कीमत मिल जाती है तो फिर वे कंपनी तक माल पहुंचाने के लिए अतिरिक्त खर्च क्यों करें? इस पर चर्चा करते हुए एक पूर्व कृषि अधिकारी ने सुझाव दिया कि सरकार को सभी राज्यों की बैठक बुलाकर एफपीओ को मंडी शुल्क से छूट देने पर विचार करना चाहिए.
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सरकार पहले ही 10,000 एफपीओ बनाने का लक्ष्य हासिल कर चुकी है और अब इन संगठनों की आय बढ़ाने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इस संबंध में कृषि सचिव ने साप्ताहिक वेबिनार शुरू किया है ताकि सरकार और कंपनियों के बीच बेहतर संवाद स्थापित हो सके और एफपीओ को सीधे बाजार से जोड़ा जा सके.