देश में इस समय मौजूद कुल जलाशयों में से 97.1 प्रतिशत जलाशय ग्रामीण इलाकों में है. शहरों की झोली में महज 2.1 फीसदी जलाशय ही बचे हैं. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने आजाद भारत में पहली बार जलाशयों की गणना (सेंसस ऑफ वॉटर बॉडीज) कर इसकी रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले तथ्यों से शहरों को बेपर्दा किया है. इस रिपोर्ट में देश के लगभग समूचे जलाशय सहेजने का श्रेय उन्हीं गांवों को दिया गया है, जहां से बीते कुछ दशकों में तथाकथित सुख सुविधाएं मुहैया कराने वाले शहरों की ओर से सर्वाधिक पलायन हुआ है. रिपोर्ट बताती है कि पूरे देश में 24.24 लाख जलाशय हैं. इनमें से 78 फीसदी जलाशय मानव निर्मित हैं. शेष 22 फीसदी जलाशय ही प्राकृतिक हैं.
सरकार की यह रिपोर्ट बताती है कि जलाशयों का संरक्षण करने में शहर किस प्रकार नाकाम साबित हुए हैं. इन आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हो गया है कि महज 2.1 फीसदी वॉटर बॉडी के सहारे बचे शहरों को क्यों अपनी पानी की जरूरतों की पूर्ति के लिए दूसरे इलाकों से पानी मंगाना पड़ रहा है. प्राकृतिक और मानव निर्मित, दोनों प्रकार के जलाशयों की अगर बात की जाए तो इस रिपोर्ट के अनुसार शहरों में मात्र 3.5 फीसदी प्राकृतिक जलाशय ही बचे हैं. इतना ही नहीं इससे भी कम, यानि 2.7 प्रतिशत मानव निर्मित जलाशय ही शहरों में शेष हैं. कुल मिलाकर इस चौंकाने वाली रिपोर्ट का लब्बोलुआब यही है कि भारत के शहर अब 'पानीदार' नहीं रहे.
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जल शक्ति मंत्रालय ने देश की पहली वॉटर बॉडी सेंसस रिपोर्ट में नदी, तालाब, झील, पानी एकत्र करने वाले बड़े टैंक और बांध आदि जल संग्रह क्षेत्रों के आंकड़े जुटाकर इसे तैयार किया है. इसमें बताया गया है कि पूरे देश में कुल 24 लाख 24 हजार 540 ऐसे जलाशय मौजूद हैं, जो जल संग्रह की क्षमता धारण करते हैं. छोटे या बड़े रूप में जल धारण क्षमता वाले इन जलाशयों की गणना करने वाली रिपोर्ट में शामिल की गई 24 लाख से अधिक वॉटर बॉडी में सर्वाधिक 59.9 प्रतिशत हिस्सेदारी तालाबों की है.
इसके बाद 15.5 प्रतिशत हिस्सेदारी टैंक की और 12.1 प्रतिशत हिस्सेदारी कुआं, पोखर आदि जल संग्रह स्थलों की है. शेष 12.7 प्रतिशत जलाशयों में बांध, झील सहित अन्य जल स्रोतों को शामिल किया गया है. इस रिपोर्ट में मजे की बात यह भी सामने आई है कि देश के सबसे ज्यादा (9.6 प्रतिशत) जलाशय आदिवासी इलाकों में हैं. इसके बाद 8.8 प्रतिशत जलाशय बाढ़ की संभावना वाले इलाकों में और 7.2 प्रतिशत जलाशय सूखा प्रभावित क्षेत्रों में मौजूद हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल जलाशयों में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सेदारी तालाबों की है. इनमें नए और पुराने, सभी प्रकार के तालाब शामिल हैं. स्पष्ट है कि ये सभी तालाब मानव निर्मित हैं. इससे साफ है कि देश की धरा पर जल संग्रह में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मानव निर्मित ये तालाब ही निभा रहे हैं. इनमें भी सर्वाधिक तालाबों को अपने आगोश में समेटने वाले दो अग्रणी राज्य पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश हैं. प. बंगाल में कुल 7.47 लाख जलाशयों में से 4.57 लाख तालाब हैं. वहीं उप्र में 2.45 लाख जलाशयों में से 2.39 लाख तालाब हैं.
रिपोर्ट के अनुसार देश में मौजूद कुल जलाशयों में 97.1 प्रतिशत जलाशय ग्रामीण इलाकों में हैं. देश में मौजूद मानव निर्मित जलाशयों में 97.3 फीसदी और प्राकृतिक जलाशयों में से 96.5 फीसदी जलाशय, ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं. इतना ही नहीं देश में मौजूद 24.24 लाख जलाशयों में से 83.7 प्रतिशत जलाशय पूरी तरह से इस्तेमाल में हैं, जबकि 16.3 प्रतिशत जलाशय, दूषित होने या अतिक्रमण का शिकार होने जैसे कारणों से अब उपयोग से बाहर हाे गए हैं.
इस्तेमाल में लाए जा रहे जलाशयों का सर्वाधिक उपयोग मछली पालन के लिए हो रहा है. इनका दूसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल खेती में सिंचाई के लिए होता है. स्पष्ट है कि ये सभी जिंदा और उपयोग में लाए जा रहे जलाशय ग्रामीण इलाकों में हैं तथा इन्हें जिंदा रखने का जिम्मा किसानों ने अपने कंधों पर उठाया है.
जलाशयों को जिंदा रखने में गांव और किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका काे उजागर करते हुए रिपोर्ट बताती है कि देश के जलाशयों में 55.2 प्रतिशत जलाशय निजी हैं और इनके अधिकांश मालिक किसान ही हैं, जबकि शेष 44.8 प्रतिशत जलाशय सार्वजनिक क्षेत्र के स्वामित्व वाले हैं और इनमें से अधिकांश ग्राम पंचायतों के संरक्षण वाले जलाशय हैं. स्पष्ट है कि देश में मौजूद जलाशयों के वास्तविक पहरेदार गांव और किसान ही हैं.
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देश भर में मौजूद जलाशयों की विभिन्न राज्यों में मौजूदगी की बात की जाए तो, इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में सर्वाधिक जलाशय पश्चिम बंगाल (30.08 प्रतिशत) में हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश 10.1 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूसरे पायदान पर है, जबकि आंध्र प्रदेश में 7.9 प्रतिशत, उड़ीसा में 7.5 प्रतिशत और असम में 7.1 प्रतिशत जलाशय हैं.
स्पष्ट है कि देश के लगभग 62 फीसदी जलाशय इन 5 राज्यों में ही मौजूद हैं. देश के कुल जलाशयों में महज 32 प्रतिशत भागीदारी शेष 25 राज्यों के हिस्से में आना भी, एक गंभीर सवाल की ओर इशारा करता है. इतना ही नहीं देश के तमाम राज्य अपने तालाब और झील जैसे प्राकृतिक जलाशयों को बचाने में नाकाम रहे. इनमें देश की 12803 झीलें ऐसी पाई गई हैं, जो प्रदूषण या अतिक्रमण की मार के कारण अब इस्तेमाल में नहीं हैं. इनमें सबसे ज्यादा 7388 झीलें तमिलनाडु में, 2426 झीलें बिहार में और 1854 झीलें कर्नाटक में हैं.