खेती छोड़कर कल-करखाने की तरफ भाग रहे किसान, आखिर कैसे भरेगा देश-दुनिया का पेट!

खेती छोड़कर कल-करखाने की तरफ भाग रहे किसान, आखिर कैसे भरेगा देश-दुनिया का पेट!

खेती में लगे लोगों की तादाद में गिरावट ऐसे महत्वपूर्ण समय में आई है जब खाद्य उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पहले कभी इतनी नहीं रही. अध्ययनों से पता चलता है कि 2050 तक वैश्विक आबादी को खिलाने के लिए खेती में कम से कम 25 प्रतिशत का विस्तार होना चाहिए. लेकिन अभी जिस तरह से पलायन देखा जा रहा है, उससे साफ है कि यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा.

किसानों का दूसरे क्षेत्र में पलायन जारी है
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Feb 28, 2024,
  • Updated Feb 28, 2024, 6:57 PM IST

जैसे-जैसे दुनिया बढ़ती खाद्य मांग से जूझ रही है, वैसे-वैसे एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है. वह बदलाव है कृषि क्षेत्र से पलायन. अन्य उद्योगों में श्रमिकों का यह पलायन दुनिया की कृषि व्यवस्था को नया आकार दे रहा है, जिससे भविष्य के खाद्य उत्पादन और सुरक्षा के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं. आर्थिक दृष्टि से कृषि क्षेत्र छोटा लगता है. यह भारत, यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और यहां तक कि दुनिया भर में जीडीपी का एक छोटा सा हिस्सा है.

1991 के बाद से वैश्विक स्तर पर हर पांच में से लगभग एक कृषि श्रमिक अन्य क्षेत्रों में चला गया है, फिर भी कुल सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी चार प्रतिशत पर लगभग स्थिर बनी हुई है. यह विरोधाभास इस क्षेत्र के महत्व और इसके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालता है. अकेले भारत में पिछले तीन दशकों में पांच में से दो कृषि श्रमिक अन्य क्षेत्रों में चले गए हैं. यह प्रवृत्ति दुनिया भर में दिखती है, क्योंकि बढ़ती भूख की समस्या के बावजूद कम ही लोग खेती को आजीविका के रूप में चुनते हैं.

खेती में घटते लोग

खेती के वर्कफोर्स में गिरावट ऐसे महत्वपूर्ण समय में आई है जब खाद्य उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पहले कभी इतनी नहीं रही. अध्ययनों से पता चलता है कि 2050 तक वैश्विक आबादी को खिलाने के लिए खेती में कम से कम 25 प्रतिशत का विस्तार होना चाहिए. लेकिन अभी जिस तरह से पलायन देखा जा रहा है, उससे साफ है कि यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा.

कृषि रोजगार में गिरावट स्पष्ट है, जिसे विश्व बैंक के हालिया आंकड़ों से उजागर किया गया है. 1991 में, ब्राज़ील, चीन और भारत जैसे देशों में रोज़गार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि में था. 2022 तक तेजी से आगे बढ़ते हुए, कृषि वर्कफोर्स में भारी कमी के साथ एक बड़ा बदलाव आया है. आर्थिक विकास और शहरीकरण को देखते हुए यह परिवर्तन चिंताजनक है.

पिछले तीन दशकों में भारत में लगभग 20 प्रतिशत लोग अन्य क्षेत्रों में चले गए हैं. चीन में, कृषि वर्कफोर्स 1991 में लगभग 60 प्रतिशत से घटकर 2022 में 22 प्रतिशत हो गया, जो देश के तेजी से औद्योगिकीकरण को दर्शाता है. इसी तरह, ब्राजील और रूस में कृषि रोजगार में बड़ी गिरावट देखी गई. 

वैश्विक स्तर पर, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी में पिछले तीन दशकों में थोड़ा उतार-चढ़ाव आया है. 1991 में लगभग पांच प्रतिशत से शुरू होकर, यह 2005 और 2006 में सबसे कम तीन प्रतिशत पर आ गई और 2022 तक लगभग 4.3 प्रतिशत पर स्थिर हो गई. इससे पता चलता है कि उद्योगों और टेक्नोलॉजी में प्रगति के बावजूद कृषि वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है.

भारत में घटी हिस्सेदारी

भारत में, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि हिस्सेदारी 1991 में 28 प्रतिशत से घटकर 2022 तक 17 प्रतिशत हो गई है, जो देश के तेजी से औद्योगीकरण और सेवा क्षेत्र के विस्तार को दर्शाता है. हालांकि, कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल बनी हुई है, खासकर इसकी बड़ी ग्रामीण आबादी को देखते हुए. 

यूरोप में किसान पीछे हट रहे हैं. भारत में भी यही स्थिति है. यहां 2020 और 2021 में आंदोलन हुए हैं. फिर इस साल भी वे आंदोलन पर उतर आए हैं. खाद्य पदार्थों की कीमतें मायने रखती हैं. यह सबको और सब जगह प्रभावित करती है. मतदाताओं ने बढ़ती खाद्य कीमतों और खाद्य सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की है. दुनिया भर के किसान इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं.(दीपू राय की रिपोर्ट) 

 

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