दलहनी सब्जियों में मटर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है. मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में अधिक पैदावार मिलती है तो वहीं ये भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक होती है. फसल चक्र के अनुसार यदि इसकी खेती की जाए तो इससे भूमि उपजाऊ बनती है. खास बात यह है कि मटर की कई अलग-अलग किस्में भी हैं. इन किस्मों की पैदावार क्षमता भी अलग-अलग है. ऐसे में मटर की एक ऐसी किस्म भी है जो कई रोगों से मुक्त है. वहीं, ये किस्म मात्र 120 दिनों में तैयार हो जाती है. आइए जानते हैं इस किस्म की खासियत और कैसे करें इसकी खेती.
इस मटर की खास किस्म का नाम पंत मटर 484 है. पंत मटर 484 किस्म हाइब्रिड मटर की एक अगेती वैरायटी है. इसकी बुवाई से 30 से 35 दिनों के अंदर ही इसमें फूल आने लगते हैं, जबकि इसकी हरी फलियों के रूप में पहली तुड़ाई 50 से 55 दिनों में कर सकते हैं. वहीं, ये किस्म 120 दिनों में पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, जिसके कारण इसमें चूर्ण फफूंद और फली छेदक रोग का प्रकोप कम देखने को मिलता है. ये किस्म प्रति हेक्टेयर 23 क्विंटल तक पैदावार देने में सक्षम है. इस किस्म में 26 फीसदी प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. वहीं, ये किस्म रबी मौसम में वर्षा आधारित क्षेत्र के लिए उपयुक्त है.
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मटर की बुवाई करने से पहले सबसे अधिक भूमि का चुनाव करना होता है. आप किसी भी तरह के खेत में मटर की बुवाई नहीं कर सकते हैं. ऐसे मटर की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी अच्छी मानी गई है. दोमट और बलुई मिट्टी में मटर की खेती करने पर बेहतर उपज मिलती है. वहीं, मिट्टी का पीएच मान 6-7.5 होना चाहिए. साथ ही बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें. अगर मिट्टी में दीमक, तना मक्खी और लीफ माइनर का प्रकोप दिखाई दे रहा है, तो खेती की अंतिम जुताई करते समय फोरेट 10 जी, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर दें. इससे फसल में रोग लगने की संभावना नहीं रहती है.
मटर की बुवाई से पहले खेत की कम से कम दो बार अच्छे से जुताई कर लें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. जुताई के समय ही खेत में सड़ी गोबर की खाद मिला दें. वहीं, मटर बुवाई पूरे अक्टूबर और कुछ हिस्सों में नवंबर के महीने में भी कर सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में नमी हो और बारिश की संभावना न हो. बुवाई करने के बाद अगर बारिश होती है तो मिट्टी सख्त हो जाती है और पौधे निकलने में दिक्कत होती है. वहीं, अगर खेत में पानी जमा हो गया तो बीज सड़ भी सकते हैं.