भारत खेती-किसानी और विविधताओं से भरा देश है. यहां अलग-अलग फसलें अपनी खास पहचान की वजह से जानी जाती हैं. वहीं, कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपने स्वाद के लिए मशहूर होती हैं. ऐसी ही एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम कुफरी सिंदूरी है. दरअसल, ये वैरायटी आलू की एक खास किस्म है, जिसकी खेती रबी सीजन में की जाती है. वहीं, बात करें आलू की तो ये रबी फसल की एक प्रमुख फसल है. आलू की खेती किसानों के लिए काफी लोकप्रिय खेती है. ऐसे में आइए जानते हैं आलू की कौन-कौन सी उन्नत किस्में हैं?
कुफरी सिंदूरी किस्म: कुफरी सिंदूरी भी आलू की एक उन्नत किस्म है, जो पाले को भी सहन कर सकती है. मैदानी और पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. पहाड़ी इलाके के मुकाबले मैदानी इलाके में फसल जल्दी तैयार हो जाती है. यह किस्म 120 से 125 दिनों में तैयार होती है.
कुफरी पुखराज किस्म: ये किस्म आलू की सबसे खास वेराइटी है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में सबसे कम अवधि में तैयार होती है. उत्तर भारत में इसकी खेती सबसे अधिक होती है. खासकर इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में की जाती है. इस किस्म की अच्छी बात तो ये है कि यह वैरायटी बुवाई के 100 दिनों के अंदर ही तैयार हो जाती है.
कुफरी चिप्सोना किस्म: आलू की ये किस्म चिप्स बनाने के लिए काफी फेमस होती है. इस किस्म को चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त माना जाता है. इस किस्म की खेती भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में की जाती है. आलू की इस किस्म में किसान को प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक की पैदावार मिलती है.
कुफरी अलंकार किस्म: यह आलू की उन्नत किस्म है जो प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक उपज देती है. इस किस्म के आलू की फसल 70 दिनों में ही तैयार हो जाती है. ये किस्म उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अच्छी पैदावार देती है.
कुफरी नीलकंठ किस्म: एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आलू की ये बेहतरीन किस्म है, जो ज़्यादा ठंड के मौसम को भी बर्दाश्त कर सकती है. इसकी उत्पादन क्षमता अन्य किस्मों से अधिक होती है. इस किस्म की फसल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके अलावा स्वाद में भी यह आलू बहुत अच्छा होता है. वहीं उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए यह किस्म अच्छी मानी जाती है.