बरसात में खरीफ मक्का के लिए बड़ी समस्या है खरपतवार, इन 2 दवाओं का छिड़काव दिलाएगा छुटकारा

बरसात में खरीफ मक्का के लिए बड़ी समस्या है खरपतवार, इन 2 दवाओं का छिड़काव दिलाएगा छुटकारा

खरीफ सीजन में खरपतवार की समस्या अधिक देखी जाती है. इसलिए सही समय पर निराई गुड़ाई करके उचित प्रबंधन करना जरूरी है. खेत में उगे खरपतवार मिट्टी से पोषण ले लेते हैं. इसका असर फसलों पर पड़ता है. खरपतवार के कारण उपज में 40-50 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है.

मक्के की खेती के लिए सलाहमक्के की खेती के लिए सलाह
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jul 02, 2024,
  • Updated Jul 02, 2024, 11:38 AM IST

बरसात के मौसम में खरीफ मक्का की खेती की जाती है. यह किसानों के लिए फायदेमंद मानी जाती है क्योंकि इस सीजन में लगाए गए मक्के की पैदावार अच्छी होती है और इससे किसानों को अच्छी कमाई होती है. खरीफ मक्के की अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए खेत में खरपतवार का सही तरीके से प्रबंधन बेहद जरूरी है. बारिश के मौसम में खेत में खरपतवार अधिक उगते हैं और इसके मक्के के पौधों पर खराब असर पड़ता है. इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है. इसलिए बरसाती मक्के की अधिक उपज हासिल करने के लिए खेत में खरपतवार का नियंत्रण करना बेहद जरूरी है. 

खरीफ सीजन में खरपतवार की समस्या अधिक देखी जाती है. इसलिए सही समय पर निराई गुड़ाई करके उचित प्रबंधन करना जरूरी है. खेत में उगे खरपतवार मिट्टी से पोषण ले लेते हैं. इसका असर फसलों पर पड़ता है. खरपतवार के कारण उपज में 40-50 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है. मक्के खेती में आम तौर पर संकीर्ण पत्तियों वाले खरपतवार लगते हैं जिनमें सांवा, गूज घास, मकरा, जैसे कई घास शामिल हैं. इसके साथ ही मक्के की खेती में चौड़ी पत्तियों वाले भी खपतवार जैसे कुंद्रा, चौलाई, साटी, मकोई जैसे घास लगते हैं. इनका उचित तरीके से प्रबंधन करना जरूरी है. 

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खरपतवार हटाना बेहद जरूरी

आज के दौर में मजदूर मिलना मुश्किल होता है. इसलिए खेत से घास निकालने के काम में काफी समय और परेशानी होती है. खास कर बारिश के मौसम में जब धान के खेत में भी अधिक काम होता है. ऐसे में किसान मक्के के खेत में निराई-गुड़ाई करने और खरपतवार नियंत्रण करने के लिए अधिक समय नहीं निकाल पाते हैं. इस स्थिति में किसान शाकनासी (Herbicide) का प्रयोग करते हैं. बारिश के मौसम में इसका इस्तेमाल करने से लाभदायक रिजल्ट मिलते हैं. खेतों से खरपतवार के नियंत्रण के लिए लिए किसान शाकनासी रसायान एट्राजीन या टेफ्राजिन का प्रयोग कर सकते हैं. 

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इन दवाओं का करें इस्तेमाल

एट्राजीन या टेफ्राजिन (50 प्रतिशत डब्ल्यूपी) के प्रयोग से चौड़ी पत्तियों वाले और पतली पत्तियों वाले खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. लेकिन दूब, मोथा और कोना जैसे खरपतवार इसके इस्तेमाल से नहीं मरते हैं. इसलिए इनको खुरपी से खोदकर बाहर निकालने की जरूरत होती है. एट्राजिन की मात्रा खेत के प्रकार पर निर्भर करती है जो हल्की मिट्टियों में कम और भारी मिट्टियों में अधिक होती है. खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 1.0 से 1.5 ग्राम एट्राजिन की जरूरत होती है जिसे 600 लीटर पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव किया जाता है. छिड़काव करते समय व्यक्ति को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है. 

 

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