पिछले कुछ सालों से खेती में नैनो-यूरिया का चलन बढ़ा है. किसान इसे फसलों की बेहतरी के लिए प्रयोग करते आ रहे हैं. वैज्ञानिक और विशेषज्ञ भले ही नैनो यूरिया की प्रभावशीलता पर तर्क देते हों, लेकिन किसानों के लिए यह मददगार साबित हो रही है. कुछ वैज्ञानिकों की मानें तो इसका संतुलित प्रयोग करने से फायदा होता है और असंतुलित प्रयोग फसल के पोषक तत्व को खत्म कर सकता है. खैर, इन सबसे परे आज हम आपको बताते हैं कि कैसे नैनो यूरिया किसानों के लिए एक फायदेमंद उर्वरक हो सकता है.
कृषि मंत्रालय के अनुसार पारंपरिक यूरिया की तुलना में नैनो यूरिया ज्यादा प्रभावी है. यह पौधों को जरूरी नाइट्रोजन प्रदान करता है. इसके उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, पर्यावरण प्रदूषण में कमी और किसानों की लागत में कमी आती है. उत्पादन लागत घटने और बेहतर फसल उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि होती है. मंत्रालय का दावा है कि नैनो यूरिया एक स्थायी और लाभकारी उर्वरक है जो कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है.
यह भी पढ़ें-"गजनी सिंड्रोम" से पीड़ित हो गई है महायुति, लोन माफी से पलटी महाराष्ट्र सरकार पर कांग्रेस का हमला
मंत्रालय का कहना है कि नैनो यूरिया, ठोस यूरिया के मुकाबले किसानों को कम कीमत पर मिल जाता है. साथ ही यह पौधों के पोषण के लिए बेहद प्रभावी और असरदार भी है. जो सबसे बड़ा दावा मंत्रालय की तरफ से किया गया है, उसके अनुसार नैनो यूरिया भूमिगत जल की गुणवत्ता को सुधारने में मदद करता है.
यह भी पढ़ें-राजस्थान में गिरा धनिया का उत्पादन, लहसुन बना किसानों की पसंद, आखिर क्या है वजह?
कई विशेषज्ञों का कहना है कि नैनो यूरिया पारंपरिक यूरिया की तुलना में महंगा है और समय के साथ कम प्रभावी है. वहीं वो यह भी कहते हैं कि यूरिया से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है, लेकिन आसान नहीं है. साथ ही देश को रासायनिक उर्वरकों पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए एक सही और चरणबद्ध प्रक्रिया अपनानी चाहिए.
भारत सरकार ने उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 के तहत खास कंपनियों की तरफ से उत्पादित नैनो यूरिया और नैनो डीएपी की विशेषताओं के बारे में बताया है. इसके बाद, देश में 26.62 करोड़ बोतलों (प्रति बोतल 500 मिली) की वार्षिक क्षमता वाले छह नैनो यूरिया प्लांट और 10.74 करोड़ बोतलों (प्रति बोतल 500/1000 मिली) की वार्षिक क्षमता वाले चार नैनो डीएपी प्लांट्स लगाए गए हैं.