रबी सीजन वाले प्याज की रोपाई अब भी जारी है. इस समय लगाई गई पौध वाली प्याज मई के अंत से लेकर जून के पहले सप्ताह तक तैयार होगा. देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र में इसकी इस साल इसकी बंपर खेती हुई है. प्याज की फसल तैयार होने में लगभग चार महीना लगता है. इस दौरान अच्छे पैदावार के लिए किसानों के लिए खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर खास ध्यान देना पड़ता है. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि प्याज में खाद की कितनी मात्रा हो तो अच्छी पैदावार मिलेगी. रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के वैज्ञानिकों के अनुसार प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय मिला दें. इसके अलावा 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस और 50 किलो पोटाश की जरूरत होती है.
नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय दें. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा रोपाई के डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में दें. जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में रोपाई से पहले जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिलाएं. या फिर जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का छिड़काव पौधों रोपाई के 60 दिन बाद करें. अच्छी पैदावार के लिए खाद का संतुलन जरूरी है.
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प्याज की फसल को शुरुआती अवस्था में कम सिंचाई की आवश्यकता जरूरत होती है. बुवाई या रोपाई के साथ एवं उसके तीन-चार दिन बाद हल्की सिंचाई जरूर करें, ताकि मिट्टी नम रहे. लेकिन बाद में सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है. कंद बनते समय पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए. फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं. इस समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. वैज्ञानिकों के अनुसार 15×10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए रोपाई कर दें. रोपाई के समय खेत में नमी और3-4 बार हल्की सिंचाई करें. ये तो रही खाद और पानी की बात. अब इसमें लगने वाली प्रमुख बीमारी आर्द्रगलन के बारे में बात कर लेते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आर्द्रगलन बीमारी आमतौर पर नर्सरी एवं पौधे की शुरुआती अवस्था में नुकसान पहुंचाता है. यह मुख्य रूप से पीथियम, फ्यूजेरियम तथा राइजोक्टोनिया फंगीसाइड द्वारा होती है. हालांकि, इस बीमारी का प्रकोप खरीफ मौसम में ज्यादा होता है. इस रोग में पौध के जमीन की सतह पर लगे हुए स्थान पर सड़न दिखाई देती है और आगे पौध उसी सतह से गिरकर मर जाती है.
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