अमेरिका भारत में अपने कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए यहां की सरकार से आयात शुल्क कम कराने की कोशिश कर रहा है. इसमें वह चारा फसल ‘अलफाल्फा’ यानी ल्यूसर्न के बीज पर भी आयात शुल्क कम करवाना चाहता है. लेकिन, इस बीच केंद्र सरकार इस फसल के अनुवांशिक रूप से सुधारी गए बीज यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) बीज की भारत में एंट्री रोकने की तैयारी में है. अमेरिका के किसान ल्यूसर्न की जीएम और गैर-जीएम यानी सामान्य दोनों किस्मों की खेती करते हैं. ल्यूसर्न के लिए ‘अल्फाल्फा’ नाम अरबी शब्द अल-फसफासा से लिया गया है. इसका अर्थ ‘सबसे अच्छा चारा’ है.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सूत्र ने कहा कि जीएम वैरायटी का भारत में प्रवेश रोकने के लिए पहचान के लिए वैज्ञानिकों को एक सरल टेस्टिंग किट बनानी पड़ सकती है, ताकि बंदरगाहों पर खेप को उतारने से पहले इसकी जांच की जा सके. हालांकि, सूत्र ने कहा कि कम समय के अंदर इस तरह की किट बनाई जा सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान समय में मंडियों में घरेलू रूप से उगाई जाने वाले ल्यूसर्न चारे के बीज बाजार में 500 से 800 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट से मिल रहे हैं. वहीं, बाहर से मंगाए जाने वाले बीज आयात शुल्क लगाए जाने के चलते ज्यादा महंगे हैं. केंद्र सरकार ने ल्यूसर्न बीज (HS कोड 12092100) पर 50.045 प्रतिशत प्रभावी आयात शुल्क लगाया है.
इसके अलावा, ल्यूसर्न के बीज के आयात के लिए कृषि मंत्रालय के पौध संरक्षण दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है. साथ ही आयात के लिए भारतीय मानकों के अनुरूप निर्यातक देश से वैध फाइटोसैनिटरी प्रमाणपत्र भी अनिवार्य है. अभी भारत में इस बीज का आयात नहीं किया जाता है. देश में ही इसकी खेती हो रही है. व्यापारियों का कहना है कि आयात शुल्क के चलते यह व्यापक इस्तेमाल के लिए किफायती नहीं है.
वर्तमान में भारत मिस्र और कुछ सीआईएस देशों से चारे के इस्तेमाल के लिए बरसीम के बीज इंपोर्ट करता है. हालांकि, बीते कुछ सालों में भारत ने घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर इन बीजों के आयात में भारी कमी लाई है. अब आयात घटकर लगभग 500 टन प्रतिवर्ष रह गया है. उद्योग से जुड़ें लोगों का कहना है कि बरसीम सस्ता होने और ज्यादा पैदावार के कार इसकी आयात की जाने वाली किस्मों को प्राथमिकता दी जाती थी.