उत्तर भारत के अधिकांश इलाकों से डीएपी की किल्लत की खबरें आ रही हैं. किसानों को लंबी लाइनों में देखा जा रहा है. यहां तक कि इस भीड़ को संभालने के लिए पुलिस कार्रवाई भी देखी जा रही है. एक दो जगह से खुदकुशी की घटनाएं भी सामने आई हैं. चूंकि डीएपी के बिना गेहूं की बुवाई नहीं कर सकते, इसलिए इसकी किल्लत बड़ी समस्या पैदा कर रही है. दूसरी ओर सरकारी महकमा का कहना है कि खाद की कोई किल्लत नहीं है. केंद्र से जैसे-जैसे रैक मिल रही है, किसानों को उसे सप्लाई की जा रही है. इन तमाम घटनाओं के बीच नैनो डीएपी का खयाल भी लोगों के मन में आता है. सवाल है कि क्या दानेदार डीएपी की जगह नैनो डीएपी का इस्तेमाल कर सकते हैं?
इसका जवाब है नहीं, क्योंकि दोनों का रोल अलग-अलग है. दानेदार डीएपी जहां गेहूं या अन्य फसल की बुवाई के समय मिट्टी में मिलाई जाती है, वहीं नैनो डीएपी लिक्विड होने के चलते उससे बीज उपचार कर सकते हैं या फसलों की पत्तियों पर छिड़क सकते हैं. इस तरह नैनो डीएपी का काम दानेदार डीएपी से बिल्कुल अलग है. नाम भले ही दोनों का एक तरह का हो, लेकिन दोनों का काम बहुत अलग-अलग है.
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अब दोनों के इस्तेमाल के बारे में जान लेते हैं. दानेदार डीएपी का प्रयोग फसलों की बुवाई के समय करते हैं जबकि नैनो डीएपी का उपयोग बीज के उपचार के समय करते हैं. डीएपी को फसलों की जड़ के पास देकर ऊपर से मिट्टी चढ़ाई जाती है जबकि नैनो डीएपी को फसलों पर छिड़का जाता है. पेड़-पौधों के चारों ओर गड्ढे बनाकर उसमें डीएपी डाली जाती है जबकि नैनो डीएपी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. नैनो डीएपी लिक्विड है, इसलिए स्प्रे करने के लिए ही उसका प्रयोग करते हैं.
नैनो डीएपी @ 3-5 मिली प्रति किलो बीज को जरूरी मात्रा में पानी में घोलकर 20-30 मिनट के लिए छोड़ दें, ताकि बीज की सतह पर नैनो डीएपी की परत चढ़ जाएगी. इसके बाद छाया में सुखाकर फिर बुवाई कर दें. नैनो डीएपी @ 3-5 मिली प्रति लीटर पानी में डालें. आवश्यक मात्रा में नैनो डीएपी घोल में अंकुर की जड़ों या कंद या सेट को 20-30 मिनट के लिए डुबोएं. इसे छाया में सुखाकर रोपाई करें.
पत्तों पर छिड़काव करना है तो अच्छे पत्ते आने की अवस्था में (जुताई/शाखाएं आने के समय) नैनो डीएपी @ 2-4 मिली प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. उच्च फास्फोरस की जरूरत वाली फसलों में फूल आने से पहले की अवस्था में एक अतिरिक्त छिड़काव किया जा सकता है.
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दूसरी ओर, डीएपी को पहले से बुवाई की गई खेती या फसलों की बुवाई के दौरान दिया जा सकता है. डीएपी की खुराक फसल और मिट्टी के हिसाब से होनी चाहिए जबकि नैनो डीएपी को केवल फसल की जरूरत के हिसाब से देते हैं. डीएपी का इस्तेमाल फूल वाली फसल और सब्जियों के लिए किया जा सकता है. भारी जमीन के लिए इसे अच्छी खाद मानते हैं.