बीन्स लता वाले समूह का एक पौधा है. इसके पौधों पर निकलने वाली फलियां सेम या बीन्स कहलाती हैं जिन्हें सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसे ग्वार के नाम से भी जाना जाता है, इसकी फलियां अलग-अलग आकार की होती हैं जो देखने में पीली, सफेद और हरे रंग की होती हैं. बीन्स की मुलायम फलियां सब्जी के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं. इसमें प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है. वहीं यह सब्जी कुपोषण को दूर करने में अधिक लाभकारी होती है.इसके चलते बाजार में इसकी डिमांड पूरे साल बनी रहती है ऐसे में किसानों के लिए बीन्स की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.
अबीन्स अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
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शक्ति सीड्स कम्पनी का यह वैराईटी अधिक शाखाओ और अधिक फैलाव वाली ग्वार किस्म है. इस किस्म के दाने गोल चमक और वजनदार होते है . जड़ गलन, झुलसा, ब्लाईट जैसे रोगों के प्रति उच्च सहनशील किस्म है . लम्बी अवधि के साथ पकती है जिसका 100 से 110 का समय लग जाता है. अधिकतम उपज के साथ 7 से 10 क्विंटल / एकड़ पैदावार देखने को मिलती है. सभी प्रकार की मिटटी में उपयुक्त मानी गई है.
इस किस्म के पौधो की उचाई 90 से 100 सेंटीमीटर मानी जाती है . देश में सिंचित और असिचित अवस्था दोनों में की जा सकती है .इस किस्म को पकने में 80 से 100 दिन का समय लग जाता है . इसका ओसत उत्पादन 6 से 8 क्विंटल / एकड़ देखा जा सकता है. यह बीज किस्म ब्लाईट, जड़ गलन जैसें रोग के प्रति सहनशील होती है .
अनेक शाखाओ के साथ फैलने वाली यह किस्म प्रमाणित उन्नत किस्म है. 60 से 70 जल्दी से पकने वाली किस्म है. पैदावार की बात करें तो 18-20 क्विंटल / हेक्टेयर लिया जा सकता है .
बीन्स की कोहिनूर 51 किस्म का फल हरे रंग का होता है. इसके फल अन्य किस्मों से लंबे होते हैं. इस बीन्स के बीज को लगाने के 48-58 दिनों के अंदर पहली तुड़ाई शुरू हो जाती है. वहीं ये किस्म 90 से 100 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है. इस किस्म की खेती किसान तीनों सीजन यानी रबी, खरीफ और जायद में कर सकते हैं.
इस किस्म का निर्माण भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है. इस किस्म के पौधों पर रतुआ और चूर्णिल फफूंद का रोग नहीं लगता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर कुल उत्पादन 8 से 10 टन के आसपास पाया जाता है.
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