धान की फसल में बालियां और दाने बनने लगे हैं. वहीं, मौसम में अचानक हो रहे बदलाव के कारण धान की फसल कई रोगों और बीमारियों की चपेट में आ रही है. ऐसा ही एक रोग है गर्दन तोड़ रोग जो धान की फसल के लिए बेहद खतरनाक है. इस रोग के लगने से धान का पौधा सूखने लगता है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ जाती है. पौधा सूखने का सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है. दरअसल, ये बीमारी मौसम में अचानक हुए बदलाव और अधिक नमी के कारण फैलती है. बालियां निकलते समय इस बीमारी के कारण पौधे की गांठें कमजोर हो जाती हैं. ऐसे में किसान अपनी फसल को इस रोग से बचाने के लिए दवाओं का उपयोग सकते हैं. आइए जानते हैं क्या हैं इस कीट के लक्षण और क्या हैं इसके बचाव के उपाय.
धान की फसल में कई प्रकार के रोग लगते हैं, जो फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसा ही एक रोग है नेक ब्लास्ट यानी गर्दन तोड़ रोग. इस बीमारी की चपेट में आने के बाद धान की पत्तियों पर आंख के आकार के नीले यानी बैंगनी रंग के अनेक धब्बे बनते हैं. बाद में धब्बों के बीच का भाग चौड़ा और दोनों के किनारे लंबे हो जाते हैं. कई धब्बे आपस में मिलकर बड़े आकार के हो जाते हैं और पत्तियों को सुखा देते हैं. वहीं, तने की गांठें काली हो जाती हैं, जिससे फसल उत्पादन में कमी आती है.
ये भी पढ़ें:- सौराष्ट्र-कच्छ में फसलों को बचाने के लिए किसानों को मिलेगी 10 घंटे बिजली, गुजरात सरकार का बड़ा फैसला
गर्दन तोड़ रोग लगने पर तनों की गांठ चारों ओर से काली हो जाती है और पौधे के गांठ टूटकर नीचे झुक जाते हैं. वहीं, गांठों के ऊपर का पूरा हिस्सा सूख जाता है. वहीं, इस रोग की तीसरी और सबसे ज्यादा नुकसानदायक अवस्था ग्रीवा गलन है जिसमें बालियों के डंठल (ग्रीवा) काले हो जाते हैं और गल जाते हैं, जिसके बाद बालियों में दाने हल्के और खाली रह जाते हैं. ग्रीवा गलन का अधिक प्रकोप होने पर बालियां सफेद हो जाती हैं. वहीं, ये रोग तब लगता है जब रात का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस और एक सप्ताह तक नमी अधिक हो. वहीं, ये रोग 15 जुलाई के बाद रोपी गई फसल में ज्यादा लगता है.
धान की पत्तियों पर बीमारी का एक भी धब्बा दिखाई देते ही छिड़काव के लिए कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 400 ग्राम या बीम 120 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. बालियों पर 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय छिड़काव दोहराएं. इस छिड़काव को दोपहर के बाद करेँ. इस उपाय को अपनाकर किसान अपनी फसलों को नुकसान से बचा सकते हैं.