फलों में केले का खास स्थान है, चूंकि इसकी बागवानी बड़े पैमाने पर होती है. इसलिए ये आसानी से उपलब्ध भी होता है. केला गर्म मौसम में होने वाली फ़सल है. इसकी खेती के लिए 30-40 डिग्री वाले क्षेत्र ज्यादा सही माने जाते हैं. लेकिन, मई-जून के महीनों में तेज गर्म हवा से पौधों को बचाने के लिए सही इंतजाम रखना ज़रूरी होता है. तेज गर्म हवा केले के लिए बहुत ही नुकसानदायक होती है. विशेषज्ञो के अनुसार, गर्म हवा के थपेड़ों से पौधों में नमी की भारी कमी हो जाती है, जिससे पत्ते फट जाते हैं और प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है. इसके बाद पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. इस मौसम में केले के बागों का खास प्रबंधन बहुत जरूरी है.
अगर केले के गुच्छे मई के महीने में निकल आते हैं तो समस्या बढ़ जाती है. कोशिश करें कि बंच निकलने का समय थोड़ा आगे-पीछे हो. अगर गुच्छे निकल आए हैं तो उन्हें शुष्क हवाओं से बचाने के लिए ढंकना जरूरी है, नहीं तो गर्म हवा से वे काले पड़ सकते हैं. इसके लिए केले की सूखी पत्तियों से बंच को ढंकना सबसे सस्ता और सरल उपाय है.
आप बेहद पतले पॉली बैग (स्केटिंग बैग) से भी इसे पूरी तरह से कवर कर सकते हैं, जिससे केले का बंच लू के थपेड़ों से बच जाएगा. विशेषज्ञो अनुसार, जब पौधों में फलों के गुच्छे निकलते हैं, तो उनका भार एक तरफ बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में तेज़ हवा चलने पर पौधों के गिरने की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए, स्टेकिंग यानी पौधों को बांस-बल्लियों का सहारा देना ज़रूरी है. छत्ते में उगने वाले केले की लंबाई और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नर फूलों को काटना भी जरूरी है.
पिछले जून जूलाई के महीने में लगाए गए केले के पौधे मई में फूलने लगते हैं. फूल आने के 30 दिन बाद पूरे छत्ते में केले बनने लगते हैं. इस दौरान पौधों के पोषण का उचित ध्यान रखना पड़ता है. इस समय किसानों को वर्मीकंपोस्ट या गोबर की खाद अधिक से अधिक देनी चाहिए, क्योंकि पोषक तत्वों के साथ सिंचाई करने पर नमी अधिक देर तक बनी रहती है.
केले की खेती में सिंचाई प्रबंधन सबसे जरूरी है, क्योंकि गर्मी के दिनों में पानी का वाष्पीकरण बहुत तेज़ गति से होता है, जिससे पौधे के सूखने की संभावना रहती है. ऐसे में किसान केले के पौधों के थालों में केले की सूखी पत्तियों या फसल अवशेष का मल्चिंग करना बेहतर होता है. इससे पौधे में नमी ज़्यादा देर तक बनी रहती है. आवश्यकतानुसार पौधों को सिंचाई देना भी बेहद ज़रूरी है.
पौधों की रोपाई के कुछ दिनों बाद जब उनकी बगल से पुत्तियां (सकर) निकलती हैं, तो उन्हें समय-समय पर हटाना पड़ता है, जिससे पौधे का सही विकास हो सके. अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर ज़रूरी पोषक तत्व देना भी अहम है.सिंचाई और उर्वरकों के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करना लागत को कम करता है और लाभ के दायरे को बढ़ाता है, साथ ही केले की गुणवत्ता भी बेहतर होती है.
केले के पौधों को बचाने के लिए किसानों को खेत के किनारों पर गजराज घास या ढेंचा जैसे वायु अवरोधक पेड़ लगाने चाहिए. इसके अलावा, ग्रीन नेट का उपयोग करके पौधों को ढका जा सकता है, जिससे वातावरण ठंडा रहेगा और केले के पौधे सूखेंगे नहीं.