घर के पिछले हिस्से को बैकयार्ड कहते हैं. इस हिस्से का इस्तेमाल गार्डेनिंग से लेकर कई अन्य तरह के कामों में किया जाता है. घर का यह हिस्सा कई लोगों के लिए रोजगार का संसाधन भी होता है. जिसकी मदद से वो अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना सकते हैं. इन्हीं रोजगार में से एक है बैकयार्ड में मुर्गीपालन का रोजगार
बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें घर के पिछवाड़े में छोटे पैमाने पर घरेलू श्रम और स्थानीय रूप से उपलब्ध चारा और पानी का उपयोग करके बिना किसी विशेष खर्च के मुर्गियों को पाला जाता है. आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आर्थिक आत्मनिर्भरता प्रदान करने में पोल्ट्री फार्मिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
आमतौर पर बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग के लिए दोहरे उद्देश्य वाली मुर्गियों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें मुर्गियां घर की चारदीवारी के भीतर घूमती हैं और अपना भोजन और पानी खुद ढूंढती हैं. बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग के लिए किसी खास घर की जरूरत नहीं होती. मुर्गियों को शिकारियों से बचाने के लिए आमतौर पर रात में बांस की टोकरियों या कार्डबोर्ड के बक्सों में रखा जाता है.
वे ज्यादातर रसोई का कचरा, टूटे हुए अनाज, कीड़े आदि खाकर जीवित रहते हैं. उन्हें केवल अलग से तैयार किया गया कुछ भोजन और पानी देने की जरूरत होती है. अंडे देने के दिनों में, उन्हें अच्छी शेल क्वालिटी के लिए प्रतिदिन 5-7 ग्राम शेल ग्रिट या मार्बल के छोटे टुकड़े प्रति पक्षी दिए जाने चाहिए.
इस तरीके से मुर्गीपालन करने में कम जगह और पैसों की जरूरत होती है.
बैकयार्ड मुर्गीपालन घर के खराब अनाजों को बर्बाद होने से बचाता है.
यह बच्चों और महिलाओं को प्रोटीन कुपोषण से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
यह रसोई के कचरे, कीड़ों जैसे अपशिष्ट पदार्थों को उच्च प्रोटीन वाले अंडे और मांस में परिवर्तित करके खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मुर्गी की बीट से जमीन उपजाऊ बनती है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़े लोगों को स्वरोजगार प्रदान करता है.
सामान्य मुर्गी पालन में अधिक जगह, पैसा और तमाम तरह की व्यवस्थाओं की जरूरत होती है. यहां मुनाफे का खास ख्याल रखा जाता है. लेकिन बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग में ऐसी कोई समस्या नहीं है. आप कम लागत और कम व्यवस्थाओं के साथ आसानी से अपने घर के पिछवाड़े में मुर्गी पालन कर सकते हैं.