बिहार की भूमि जितनी उपजाऊ है, उतनी ही इसकी कृषि विविधता भी समृद्ध है. राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की फसलों की खेती होती है, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान रखती हैं. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण फल है लीची, जिसका उत्पादन मुख्यतः मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में होता है. वहीं, देश में कुल लीची उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा केवल बिहार से आता है. हालांकि, बिहार लीची के श्रेष्ठ उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस दौर में अत्यधिक गर्मी के कारण अगेती शाही लीची समेत अन्य किस्मों में फल फटने की समस्या सामने आ रही है.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के वैज्ञानिकों के अुनसार, शाही लीची जैसी अगेती किस्मों में लगभग 30 प्रतिशत तक फल फट जाते हैं. जिससे किसानों को नुकसान होता है. वहीं, इस समस्या से बचाव के लिए वैज्ञानिक फलों के गुच्छों में 'थैलाबंदी' यानी 'बैगिंग' करने का सुझाव दे रहे हैं, जिससे फल फटने की दर को कम किया जा सके और बाजार में उच्च ग्रेड का लीची अधिक दाम पर किसान बेच सकें.
लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की ओर से जारी जानकारी के अनुसार, लीची के गुच्छों को सफेद रंग के गैर-बुने हुए पॉलीप्रोपाइलीन बैग से थैलाबंदी (बैगिंग) करनी चाहिए. इससे न केवल लीची के फटने की समस्या नहीं होती, बल्कि अच्छी गुणवत्ता वाली लीची भी प्राप्त होती है. वहीं, थैलाबंदी उस समय करनी चाहिए, जब फलों की सतह पर नमी नहीं हो.
स्वस्थ और अच्छे दिखने वाले गुच्छों को धीरे से थैलियों में डाला जाता है और उनके खुले हिस्से को धागे से ठीक से बांध दिया जाता है. फल लगने के 25 से 30 दिनों के बाद, कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद ही थैलाबंदी करनी चाहिए. साथ ही शाही लीची की थैलाबंदी करने का उपयुक्त समय 20 से 30 अप्रैल के बीच है और फलों की तुड़ाई का सही समय 25 से 30 मई है.
लीची के फल फटने की समस्या अधिकतर तब देखने को मिलती है, जब तापमान 40 से 42 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाता है और सापेक्षिक आर्द्रता लगभग 50 प्रतिशत होती है. इसे रोकने के लिए किसानों को चाहिए कि फलों के पकने के समय निरंतर नमी और उचित आर्द्रता बनाए रखें. जब मिट्टी की नमी में 30 से 40 प्रतिशत की कमी हो, तो तुरंत सिंचाई करनी चाहिए.
माइक्रो स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से बागों में आवश्यक नमी एवं आर्द्रता बनी रहती है. इसके अलावा, फल लगने के 35 से 40 दिनों बाद सैलिसिलिक एसिड (Salicylic Acid) की 50 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए. यह उपाय फल फटने की समस्या को कम करता है. वहीं, अत्यधिक और अचानक तापमान में सिंचाई करने से फल फट सकते हैं. इसलिए ड्रिप (बूंद-बूंद) सिंचाई प्रणाली द्वारा प्रतिदिन हल्की सिंचाई करना ज्यादा फायदेमंद होता है.