13 मई को जब लोकसभा चुनावों का चौथा चरण होगा तो उसी समय ओडिशा में विधानसभा चुनावों के लिए भी वोटिंग होगी. जनता पांच साल बाद विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए मतदान करने के लिए पूरी तरह तैयार है. ओडिशा इस बार एक असाधारण चुनावी लड़ाई का गवाह बनने जा रहा है. यहां पर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक लगातार छठी बार चुनाव जीतकर सीएम ऑफिस पहुंचने की कोशिशों में लगे हैं. अगर वह ऐसा करते हैं तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है, उसने नवीन पटनायक की धड़कने बढ़ा दी हैं.
विशेषज्ञों की मानें तो चुनावी रैलियों में जिस तरह से भीड़ आ रही है और वह भी इतनी भीषण गर्मी में, वह इस बात का संकेत हो सकती है कि बीजू जनता दल (बीजेडी) के लिए नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं. नवीन पटनायक पिछले 25 साल से राज्य की कमान संभाले हुए हैं. राज्य में इस बार बीजेडी के लिए सत्ता विरोधी भावना है. वहीं यह बात भी सच है कि जनता बीजेडी से जरूरत परेशान है लेकिन नवीन पटनायक के लिए उनके दिल में काफी प्यार है. वोटर्स बीजेडी को तो खत्म करना चाहते हैं लेकिन नवीन पटनायक को नहीं. ओडिशा में दोहरी जंग चल रही है. विधानसभा चुनावों के नतीजे भी लोकसभा के साथ ही चार जून को आएंगे.
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प्रधानमंत्री मोदी ने ओडिशा में कहा है कि बीजेडी सरकार की एक्सपायरी डेट चार जून है. इसके साथ ही उन्होंने यहां पर पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनने की भविष्यवाणी की. राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी कहा है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ओडिशा में नंबर एक पार्टी होगी. ओडिशा चुनाव को जमीनी स्तर पर कवर करने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों को भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी लोकसभा और विधानसभा दोनों सीटों पर जीत हासिल करेगी. लेकिन क्या नवीन फैक्टर पार्टी को दो दशक की सत्ता विरोधी लहर से बचाने में मदद कर सकता है?
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वरिष्ठ पत्रकार जीत पटनायक की मानें तो जनता बीजेडी के 25 साल के शासन से तंग आ चुकी है. उनमें से कई लोग कह रहे हैं कि वो कमल को वोट देंगे और मोदी फैक्टर ओडिशा में मतदाताओं को बीजेपी की ओर आकर्षित कर रहा है. हालांकि वह मानते हैं कि बीजेडी का जमीनी नेटवर्क बहुत मजबूत है और चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा. वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि बीजेपी ने ओडिशा में कुछ खास नहीं किया है लेकिन फिर भी उसे फायदा होगा क्योंकि लोग बदलाव चाहते हैं. कांग्रेस के बारे में उनका कहना है कि पार्टी के पास ओडिशा के बड़े हिस्से में संगठनात्मक ताकत की कमी है और वह सत्ता विरोधी लहर का ज्यादा फायदा नहीं उठा पाएगी.
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ओडिशा में बीजेपी पिछले कुछ समय से बढ़त बनाए हुए है. साल 2019 के नतीजे भी यही बताते हैं. उन चुनावों में बीजेडी ने राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि बीजेपी को आठ और कांग्रेस को एक सीट मिली थी. बीजेपी के लिए यह सात लोकसभा सीटों का फयदा था. इस बारे के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़ सकती है. वहीं, विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने 147 सीटों में से 112 सीटें जीतीं. वहीं बीजेपी ने अपनी सीटों की संख्या 13 बढ़ाकर 23 कर ली. साथ ही कांग्रेस को हटाकर ओडिशा में मुख्य विपक्षी दल बन गई. कांग्रेस, जिसके पास सिर्फ नौ विधायक हैं.