भारत में पुष्प व्यवसाय में गेंदा का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर वृहत् रूप में व्यवहार होता है. गेंदा फूल को पूजा अर्चना के अलावा शादी-ब्याह, जन्म दिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर पंडाल, मंडप-द्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला, बुके, फूलदान सजाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा आपको जानकर हैरानी होगी कि गेंदा मनभावन सुगंध के साथ ही कई औषधीय में भी प्रयोग होता है जो हमें कई बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. गेंदे के फूल में कई औषधीय गुण होते हैं इसका उपयोग कई बीमारियों में किया जाता है. गेंदे के फूल में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसी कारण आयुर्वेद में कई औषधीय में इसका प्रयोग किया जाता है. गेंदे के फूल में विटामिन ए, विटामिन बी, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो कई प्रकार के रोगों से लड़ने के लिए कारगर होता है.
गेंदा के फूल का उपयोग मुर्गी के भोजन के रूप में भी आजकल बड़े पैमाने पर हो रहा है. इसके प्रयोग से मुर्गी के अंडे की जर्दी का रंग पीला हो जाता है, जिससे अण्डे की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, साथ ही आकर्षण भी बढ़ जाता है.
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1.कान दर्द में गेंदा के हरी पत्ती का रस कान में डालने पर दर्द दूर हो जाता है.
2.खुजली, दिनाय तथा फोड़ा में हरी पत्ती का रस लगाने पर रोगाणु रोधी का काम करती है.
3.अपरस की बीमारी में हरी पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है.
4.अन्दरूनी चोट या मोच में गेंदा के हरी पत्ती के रस से मालिश करने पर लाभ होता है.
5.साधारण कटने पर पत्तियों को मसलकर लगाने से खून का बहना बन्द हो जाता है.
6.फूलों का अर्क निकाल कर सेवन करने से खून शुद्ध होता है.
7.ताजे फूलों का रस खूनी बवासीर के लिए भी बहुत उपयोगी होता है.
गेंदा की खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट एवं बलुआर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है जिसमें उचित जल निकास की व्यवस्था हो.
भूमि को समतल करने के बाद एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर, मिट्टी को भुरभुरा बनाने एवं कंकर पत्थर आदि को चुनकर बाहर निकाल दें तथा सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियाँ बना दें.
1. अफ्रिकन गेंदा : इसके पौधे अनेक शाखाओं से युक्त लगभग 1 मीटर तक ऊँचे होते हैं, इनके फूल गोलाकार, बहुगुणी पंखुड़ियों वाले तथा पीले व नारंगी रंग का होता है. बड़े आकार के फूलों का व्यास 7-8 सेमी. होता है. इसमें कुछ बौनी किस्में भी होती हैं, जिनकी ऊँचाई सामान्यत 20 सेमी. तक होती है. अफ़्रीकी गेंदा के मध्यम व्यावसायिक दृष्टिकोण से उगाये जाने वाले प्रभेद-पूसा ऑरेंज, पूसा वसंतु, अफ़्रीकी येलो अन्य हैं.
2. फ्रांसीसी गेंदा: इस प्रजाति की ऊँचाई लगभग 25-30 सेमी. तक होती है इसमें अधिक शाखायें नहीं होती हैं किन्तु इसमें इतने अधिक पुष्प आते हैं कि पूरा का पूरा पौधा ही पुष्पों से ढँक जाता है. इस प्रजाति के कुछ उन्नत किस्मों में रेड ब्रोकेट, कपिड येलो, बोलेरो, बटन स्कोच इत्यादि है.
गेंदा की अच्छी उपज हेतु खेत की तैयारी से पहले 200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें. तत्पश्चात 120-160 किलो नेत्रजन, 60-80 किलो फास्फोरस एवं 60-80 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करें. नेत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें. नेत्रजन की शेष आधी मात्रा पौधा रोप के 30-40 दिन के अन्दर प्रयोग करें.
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