Apple Price Hike: सेब का स्वाद पड़ सकता है महंगा, इस वजह से बढ़ सकती है कीमतें

Apple Price Hike: सेब का स्वाद पड़ सकता है महंगा, इस वजह से बढ़ सकती है कीमतें

हिमाचल में खराब मौसम का असर सेब की उपज और परिवहन पर भी पड़ा है. इस सीजन में जहां पिछले सीजन की तुलना में उपज आधी होने की संभावना है. वहीं सड़के बंद और खराब होने की वजह से सेबों को बड़े ट्रकों की जगह कारों में ले जाया जा रहा है. यह सेब उत्पादकों और थोक विक्रेताओं, दोनों के लिए महंगा पड़ रहा है.

सेब की कीमतों में हो सकती है बढ़ोतरी, सांकेतिक तस्वीर सेब की कीमतों में हो सकती है बढ़ोतरी, सांकेतिक तस्वीर
मनजीत सहगल
  • Shimla,
  • Aug 08, 2023,
  • Updated Aug 08, 2023, 1:31 PM IST

बारिश की मार सिर्फ टमाटर और हरी सब्जियों पर ही नहीं पड़ी है, बल्कि सेब उत्पादक किसानों को भी भारी नुकसान हुआ है. जिसका असर सेब की कीमतों पर भी देखने को मिल सकता है, क्योंकि थोक बाजार में पिछले सीजन की तुलना में कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. दरअसल, कानपुर के एक थोक व्यापारी अरुण कुमार शुक्ला ने इंडिया टुडे को बताया, "एक छोटे स्वादिष्ट सेब की कीमतें पिछले साल 1000 रुपये प्रति पेटी से कम थीं. इस सीजन में वही पेटी परवाणू बाजार में 1700 रुपये में बिक रही है. परिवहन लागत और परिवहन लागत के बाद बाजार समिति शुल्क जोड़ने के बाद सेब की पेटी कम से कम 2000 रुपये में बिकेगी.”

उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक अन्य खरीदार अनिल कुमार साहू  ने कहा, "केवल छोटे आकार के सेब ही उपलब्ध हैं, जो ऊंचे दामों पर बेचे जा रहे हैं. रॉयल डिलीशियस जैसे बड़े आकार के सेबों की मांग है, जो कम मात्रा में ही उपलब्ध हैं."  

हिमाचल के सेब महंगे क्यों हैं?

ऐसे में यह सवाल यह उठता है कि इस बार हिमाचल के सेब महंगे क्यों हैं?  दरअसल, शिमला जिले के रोहड़ू के कुछ सेब उत्पादक, एसयूवी कारों में सेब की पेटियों को मंडियों में ले जाने में कामयाब रहे, क्योंकि बड़े आकार के ट्रक खराब सड़कों पर चलने में सक्षम नहीं हैं. वहीं परिवहन लागत बढ़ने की वजह से कीमतों पर भी असर देखने को मिल रहा है.

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इसके अलावा, रोहड़ू, शिमला स्थित सेब उत्पादक शशि कांत शर्मा ने कहा, "हमारे क्षेत्र में उपज 25 प्रतिशत तक कम हो गई है, क्योंकि फसल को अपेक्षित चिलिंग आवर्स नहीं मिले. कई स्थानों पर सड़कें बंद हैं, जिससे बड़े ट्रकों की आवाजाही बंद हो गई है. हमें फलों की पेटियों को कारों से परिवहन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. 

सेब की उपज में गिरावट 

मालूम हो कि राज्य में इस सीजन में लगभग 1.90 करोड़ पेटी सेब की उपज हो सकती है, जबकि पिछले साल 3.36 करोड़ पेटी सेब की उपज हुई थी. सबसे कम सेब की पैदावार 2018 में दर्ज की गई थी जब केवल 1.5 करोड़ पेटी का उत्पादन हुआ था.

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संपर्क करने पर राज्य के बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि राज्य सरकार सड़कों को यातायात के लिए खोलने की पूरी कोशिश कर रही है. जगत सिंह नेगी ने कहा, "राज्य को भारी नुकसान हुआ है. भूस्खलन और बाढ़ से 1400 से अधिक सड़कें बंद और खराब हो गईं थीं. लगभग 400 सड़कें अभी भी बंद हैं जिन्हें जल्द ही खोल दिया जाएगा."

सेब की पैदावार में 50 प्रतिशत की गिरावट 

राज्य के बागवानी विभाग के अधिकारियों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, राज्य में सेब की पैदावार पिछले सीज़न की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम हो जाएगी. वहीं आयात शुल्क बढ़ने के बाद हिमाचल से सेब निर्यात पर असर पड़ सकता है.

ट्रकों पर लग रहा भारी आयात शुल्क 

मालूम हो कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों में लाल सुनहरे सेब की किस्म सहित छोटे आकार के सेब का एक बड़ा बाजार है. स्थानीय कमीशन एजेंटों का कहना है कि इन देशों से लगभग 100 आयातक हर साल राज्य का दौरा करते थे, लेकिन इस सीजन में एक भी आयातक सेब बाजारों में नहीं आया है. सेब उत्पादन में गिरावट, नेपाल सरकार द्वारा ट्रकों पर भारी आयात शुल्क लगाना और हिमाचल सरकार द्वारा केवल 24 किलो के यूनिवर्सल सेब पेटी की अनुमति देने का निर्णय कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से इस सीजन में आयातक सेब खरीदने से कतरा रहे हैं.

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सोलन स्थित सेब कमीशन एजेंट अमर सिंह ठाकुर ने कहा, "नेपाल सरकार ने आयात शुल्क दो बार बढ़ाया है. पिछले साल यह 50,000 रुपये प्रति ट्रक था जिसे अब बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये कर दिया गया है. हिमाचल सरकार द्वारा सेब की पेटी का आकार 24 किलोग्राम तक सीमित कर दिया गया है. आयातक आमतौर पर बड़े पेटी पसंद करते हैं. चीन भी इन देशों में सस्ता सेब डंप कर रहा है." 

देश में होता है 25 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन

कश्मीर के बाद हिमाचल प्रदेश, भारत में सबसे बड़े सेब उत्पादक राज्यों में से एक है. राज्य की बाजार हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक है और राज्य के सेब उद्योग का आकार 5000 करोड़ रुपये है. देश में लगभग 25 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है, जिसमें से 14 से 18 लाख मीट्रिक टन कश्मीर से और चार से सात लाख मीट्रिक टन हिमाचल प्रदेश से आता है.

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