खरीफ सीजन को बागवानी फसलों की खेती के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. इस सीजन में बारिश और मध्यम तापमान के चलते सब्जियां अच्छी बढ़त हासिल कर लेती हैं.वहीं हरी सब्जियों में पालक की खेती किसानों के लिए फायदेमंद मानी जाती है. पालक की खेती सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में की जाती है. लेकिन अधिकतर सर्दी के समय पालक की खेती ज्यादा की जाती है.सर्दी के समय बाज़ार में इसकी अच्छी डिमांड होती है. खरीफ सीजन शुरू हो चुका है ऐसे में किसान शुरू में ही इसकी सही किस्मों का चयन कर पैदावार के साथ-साथ अपना मुनाफा भी बढ़ा सकते हैं. किसानों को पालक का अच्छा दाम भी मिलता हैं. ऐसे में किसान पालक की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. पालक की खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश में ज़्यादा होती है. इसकी खेती से अधिक पैदावार के लिए किसानों को अपने क्षेत्र और जलवायु की अनुसार किस्मों का चयन करना चाहिए.
अलग-अलग जगहों में देसी और विलायती, दो प्रकार का पालक उगाया जाता है. देसी पालक की बात करें तो इसके पत्ते चिकने अंडाकार, छोटे और सीधे दिखाई देते हैं, तो वहीं विलायती पालक के पत्तों के सिरे कटे हुए हैं. इसकी दो किस्में हैं, एक लाल सिरे वाली और दूसरी हरे सिरे वाली. इसमें हरे सिरे वाली को किसानों द्वारा ज्यादा पंसद किया जाता है, इसलिए मैदानी क्षेत्रों में इसे ही ज़्यादा उगाया जाता है.
हरे पत्तेदार पालक की ये किस्म मात्रा 15 से 20 दिन में तैयार हो जाती है. एक बार बुवाई करने के बाद इससे 6 से 7 बार पत्तों की कटाई कर सकते हैं. बेशक ये एक अधिक पैदावार वाली किस्म है, लेकिन सर्दियों में इसकी खेती करने पर करीब 70 दिनों में बीज और पत्तियां लगती हैं.
ये किस्म अर्ध-सेवॉय अकाडिया में चमकदार, क्यूप्ड, अंडाकार, गहरे हरे पत्ते होते हैं. प्रत्येक पत्ता काफी छोटा है, जो इस संकर को सैंडविच और सलाद के लिए एकदम सही बनाता है.
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इस किस्म की खेती पंजाब और इसके आसपास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इस किस्म के पत्ते चमकीले हरे रंग के होते हैं. इस किस्म की 6 से 7 बार कटाई आसानी से की जा सकती है. ये किस्म अधिक पैदावार देने वाली किस्मों से एक है और लगभग 14 से 16 टन प्रति एकड़ पैदावार मिलती है.
यह पालक की एक महत्वपूर्ण और सबसे ज़्यादा चलने वाली किस्म है. इसके पत्ते बेहद मुलायम और बिना रेशे वाले होते हैं. इस किस्म को अगेती और पछेती, जब चाहें, उगाया जा सकता है. बुवाई के करीब 45 दिन के बाद इसकी फ़सल तैयार होती है और लगभग 7 से 10 बार कटाई की जा सकती है. अधिक पैदावार वाली इस किस्म से लगभग 18 से 20 टन प्रति एकड़ उपज मिलती है.
ये किस्म हरियाणा और उसके आसपास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इस किस्म के पत्ते हरे रंग और बड़े आकार के होते हैं.ये जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में शामिल है. बुवाई के करीब 30 दिन में फ़सल तैयार होती है और 15 दिन के अंतर पर, 6 से 8 बार कटाई की जा सकती है.