महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान प्याज की बढ़ती कीमतों ने गठबंधन सरकार को झटका दिया था, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में सोयाबीन की गिरती कीमतों का असर भी इस पर पड़ने वाला है. अगस्त में सोयाबीन का थोक मूल्य 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. राज्य की कई मंडियों में सोयाबीन के दाम 3,200 से 3700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा 2024 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी कम है. इससे किसानों को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने 2024-25 खरीफ फसल विपणन सत्र के लिए सोयाबीन का MSP बढ़ाकर 4,892 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है, जो पिछले सत्र के 4,600 रुपये प्रति क्विंटल से 292 रुपये अधिक है. सोयाबीन की कीमतों में (MSP की तुलना में) 35 प्रतिशत की मौजूदा गिरावट से किसानों को प्रति क्विंटल 1,000-1,500 रुपये कम आय होने की संभावना है. सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार सोयाबीन की कीमतें 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं. 10 साल पहले एमएसपी 2,900 रुपये प्रति क्विंटल थी.
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हालांकि, कीमतों में गिरावट राज्य सरकार के लिए अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. किसान नेता और एमएसपी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्य अनिल घनवट के अनुसार, विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में करीब 80 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां बड़ी संख्या में किसान सोयाबीन को अपनी आजीविका का मुख्य स्रोत मानते हैं. इस क्षेत्र के किसान चुनाव नतीजों को उसी तरह प्रभावित कर सकते हैं, जिस तरह आम चुनावों के दौरान प्याज उगाने वाले किसान कर सकते थे.
लोकसभा चुनावों के दौरान प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध से सत्तारूढ़ गठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. प्याज उगाने वाले क्षेत्र में वे सभी सीटें हार गए थे. घनवट ने कहा कि सस्ते सोयाबीन और अन्य खाद्य तेलों के आयात को बढ़ावा देने की सरकारी नीति ने घरेलू कीमतों को प्रभावित किया है. किसान पिछले साल से बेहतर कीमतों की उम्मीद में सोयाबीन का भंडारण कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने आयात शुल्क हटा दिया है, जिससे आयात सस्ता हो गया है और घरेलू कीमतों में भारी गिरावट आई है.
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