भारत में खरीफ सीजन की बुवाई का समय आ गया है और जल्द ही धान, मक्का, गन्ना और सोयाबीन सहित कई प्रमुख फसलों की बुवाई शुरू हो जाएगी. भारत में खरीफ सीजन के दौरान बड़े पैमाने पर तिलहन फसल सोयाबीन की खेती की जाती है, लेकिन पिछले साल के हालातों को देखते हुए इस बार सोयाबीन की बुवाई को बड़ा झटका लगने की आशंका है. दरअसल, पिछले साल मॉनसून सीजन में अच्छी बारिश हुई और सोयाबीन का बंपर उत्पादन हुआ था. ऐसे में किसानों को सरकार से आस थी कि उन्हें फसल का अच्छा दाम मिलेगा. लेकिन, किसानों को काफी कम दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ी. इस बार किसान अन्य मुनाफा देने वाली फसलों जैसे गन्ना और मक्का की खेती पर फोकस करने की तैयारी में हैं. ऐसे में अनुमान है कि सोयाबीन का उत्पादन गिरने से सरकार को विदेशों से खाद्य तेल का आयात भी बढ़ाना पड़ सकता है.
देशभर में कई राज्यों में सोयाबीन की खेती की जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में इनमें प्रमुख हैं. पिछले सीजन में किसानों के लिए सरकार ने एमएसपी 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था. कई राज्यों में सरकारी खाद्य एजेंसियों ने एमएसपी पर उपज भी खरीदी, लेकिन सरकार कुल उत्पादन का एक छोटा हिस्सा ही खरीद सकती है और ज्यादातर किसानों को बाकी उपज निजी व्यापारियों/बाजार में बेचनी पड़ती है.
ऐसे में व्यापारी और अन्य सेक्टरों के दबाव के कारण भाव काफी कम मिलता है. किसानों का कहना है कि उन्हें पिछले साल एमएसपी से काफी नीचे लगभग 10 से 20 प्रतिशत कम दाम मिला. वहीं, कई बार कीमत एमएसपी से 2000 रुपये तक नीचे भी मिली, जो लागत से भी काफी कम था और नुकसान का सामना करना पड़ा.
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पीटीआई के मुताबिक, महराष्ट्र के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल किसानों को उपज पर खराब रिटर्न मिला था, जिसके चलते राज्य में इस बार सोयाबीन के रकबे में दो लाख हेक्टेयर की कमी आने की आशंका है. किसानों का कहना है कि सोयाबीन अच्छा मुनाफा देने वाली नकदी फसल है, लेकिन चारे के रूप में सोयाबीन खली के आयात और सरकार खरीद कम होने के कारण इसकी कीमतों पर काफी बुरा असर पड़ता है.
किसानों का कहना है कि अनियमित बारिश से होने वाला नुकसान, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरकारी खरीद में देरी जैसे कारण भी किसानों की आय को प्रभावित करते हैं. इसलिए उनकी सोयाबीन की खेती में रुचि कम हुई है. पिछले साल महाराष्ट्र में 52 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती हुई थी, जो इस बार घटकर 50 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है. पिछले साल महाराष्ट्र सोयाबीन के उत्पादन में मध्य प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर था.
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) भी सरकार के कई फैसलों को लेकर सवाल उठाता आया है, जो सोयाबीन की घरेलू कीमतों को प्रभावित कर रहे थे. SOPA के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में सोयाबीन की कीमतों में लगातार कमी दर्ज की गई है. इसी वजह से किसान अन्य फसलों का रुख करने में लगे हैं.
वहीं, गन्ना और मक्का जैसी फसलों पर किसानों को ज्यादा मुनाफे की उम्मीद है. हाल ही में सरकार ने गन्ने का एफआरपी बढ़ाकर 340 रुपये से बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल किया है. इसके अलावा मक्का भी कम लागत में होने वाली फसल है, जिसमें उत्पादन और मुनाफा दोनों ज्यादा है. भारत में मक्का का उत्पादन कम होता है, जबकि इसकी मांग ज्यादा है. अब तो सरकार मक्का से इथेनॉल बनाने पर भी फोकस कर ही है. ऐसे में किसानों को इससे बढ़िया मुनाफे का रास्ता मिल गया है.