दलहनी फसलों में मसूर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है. मसूर की खेती रबी सीजन में की जाती है. वहीं, मसूर उत्पादन में भारत का दुनिया में दूसरा स्थान है. मसूर का इस्तेमाल दाल के रूप में खाने के अलावा, नमकीन और मिठाइयों को बनाने में भी किया जाता है. दलहनी फसल होने की वजह से इसकी जड़ों में गांठ होता है जो खेत मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते हैं, जिस वजह से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है. किसान, मसूर की व्यापारिक तौर पर भी खेती करके अच्छा मुनाफा कमाते हैं.
मसूर की बुवाई रबी में अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है. लेकिन किसानों को अधिक उपज के लिए इसकी बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर के बीच करनी चाहिए.
अगर आप किसान हैं और इस नवंबर महीने में किसी फसल की खेती करना चाहते हैं तो आप मसूर की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन उन्नत किस्मों में पूसा वैभव (एल 4147), मलिका (के 75), पंत एल- 406, एलएल 931 और एलएल 699 किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
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ये किस्म सिंचित और सुखे दोनों क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है. इसके दानों का आकार छोटा होता है. मसूर की इस किस्म में आयरन की मात्रा अधिक होती है. वहीं इसकी औसत पैदावार 07 से 08 क्विंटल प्रति एकड़ तक है.
ये मसूर की उन्नत किस्मों में से एक है. यह जल्दी पकने वाली छोटी किस्म है. इसका रंग गहरे हरे पत्तों वाली होती है. यह किस्म बुवाई के 145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. ये झुलसा रोग को सहन कर सकता है. यह औसतन 5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है.
ये किस्म छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में खेती करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. मलिका (के 75) को पककर तैयार होने में 120 -125 दिनों का समय लगता है. इस किस्म के बीज गुलाबी रंग के और आकार में बड़े होते हैं. वहीं इसकी औसत पैदावार 05 से 06 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
मसूर की इस किस्म की खेती उत्तर, पूर्व और पश्चिम के मैदानी क्षेत्रों में की जाती है. इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर में भी इसकी खेती की जाती है. वहीं फसल लगभग 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म रस्ट रोग प्रतिरोधी होता है. इसकी औसत पैदावार 12 से 13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
एलएल 931 गहरे हरे पत्तों और गुलाबी फूलों के साथ छोटी किस्म है. जो कि बुवाई के 145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. ये किस्म फली छेदक के लिए प्रतिरोधी होती है. ये किस्म 05 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देती है.