इजराइल और हमास के बीच युद्ध का असर स्वेज नहर के रास्ते माल परिवहन करने वाले जहाजों पर पड़ा है. इसलिए सभी शिपिंग कंपनियों ने इस रास्ते से जाने वाले सभी ट्रैफिक को रोक दिया है. इस बीच, केप ऑफ गुड होप-दक्षिण अफ्रीका मार्ग से यूरोप और रूस को अंगूर का निर्यात जारी है, लेकिन कंटेनर किराया 2,700 डॉलर से बढ़कर 3,200 डॉलर हो गया है. इससे देश से निर्यात महंगा पड़ने लगा है. उसका परिवहन प्रभावित हुआ है और अंगूर निर्यात में बाधा उत्पन्न हुई है. इससे देश से अंगूर के निर्यात की गति धीमी हो गई है और अंगूर का निर्यात खतरे में पड़ने से अंगूर उत्पादक किसान बड़े संकट में हैं.
देश से अंगूर निर्यात सीजन शुरू हो गया है. स्वेज नहर के माध्यम से अंगूर यूरोप और रूस को निर्यात किया जाता है. दरअसल, पिछले साल जनवरी के पहले हफ्ते में 200 से 250 कंटेनर यानी 3000 से 3750 टन अंगूर का निर्यात हुआ था. लेकिन गाजा पट्टी पर इजराइल-हमास के हमले में परिवहन जहाजों पर हमला किया गया. इसके चलते मालवाहक जहाजों ने स्वेज नहर से आवाजाही बंद करने का फैसला किया है. परिणामस्वरूप, देश से अंगूर निर्यात को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. इस सीजन में 125 से 150 कंटेनर अंगूर यूरोप पहुंचे हैं. इससे देश में अंगूर के निर्यात पर भारी असर पड़ा है. पहले, अंगूर के निर्यात के लिए हर आठ दिन में दो से तीन जहाज उपलब्ध होते थे. अब फिलहाल दस से बारह दिन में खाली जहाज मिल रहे है. इससे अंगूर निर्यातक भी संकट में है क्योंकि अंगूर निर्यात करने के लिए कोई जहाज उपलब्ध नहीं है.
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ग्रेप एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष जगन्नाथ खापरे का कहना है कि स्वेज़ के रास्ते यूरोप पहुंचने में अंगूर को 20 से 22 दिन लगते हैं. लेकिन अब जहाज को केप ऑफ गुड होप से होकर आने-जाने में 10 से 15 दिन का अतिरिक्त समय लगेगा. बेशक, अंगूर 35 से 40 दिनों तक कंटेनर में रहेंगे. इससे अंगूर की आवक में देरी होगी. परिणामस्वरूप, अंगूर के खराब होने और अस्वीकृत होने की आशंका अंगूर उत्पादकों द्वारा व्यक्त की जा रही है.
इन सबका असर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार पर पड़ रहा है. केंद्र सरकार, विदेश मंत्री और जहाजरानी मंत्री को स्वेज नहर के रास्ते परिवहन की व्यवस्था करने पर ध्यान देने की जरूरत है. अंगूर निर्यातकों, इंडियन ग्रेप एक्सपोर्ट एसोसिएशन की मांग है कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई रास्ता निकालने पर चर्चा होनी चाहिए. स्वेज़ नहर के माध्यम से अंगूर के निर्यात की शिपिंग समस्याग्रस्त रही है. यातायात व्यवस्था कब सुचारु होगी, इसे लेकर संशय है. केप ऑफ गुड होप के माध्यम से परिवहन किफायती नहीं है. इससे किसान संकट में हैं.
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