मौसम में लगातार हो रहे बदलाव और बढ़ती लागत के कारण सेब उत्पादक दूसरे फलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. दरअसल, पहाड़ों में बारिश के साथ-साथ सूखे या कुछ जगहों पर बारिश और कुछ जगहों पर सूखे जैसी स्थिति को देखते हुए किसान सेब की बागवानी को छोड़कर बादाम, बेर, खुबानी, चेरी आदि जैसे गुठलीदार फलों की खेती की ओर बढ़ रहे हैं. इसके अलावा एक अन्य फल जिसने सेब उत्पादकों का ध्यान आकर्षित किया है, वह है पर्सिमन.
पिछले कुछ सालों में सेब बेल्ट में इन फलों की ओर किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है. इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण मौसम है. बता दें पारंपरिक सेब की किस्मों को सर्दियों में लगभग 800-1,200 घंटे चिलिंग की जरूरत होती है. यानी सेब को सबसे अधिक ठंड की जरुरत होती है. बर्फबारी में कमी और सर्दियों का मौसम शुष्क और गर्म होने के कारण, आवश्यक चिलिंग मिलना मुश्किल होता जा रहा है.
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स्टोन फ्रूट ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक सिंघा ने कहा, "भविष्य में पारंपरिक सेब किस्मों की चिलिंग ऑवर की आवश्यकता को पूरा करना बहुत मुश्किल होगा, खासकर मध्यम और निम्न सेब बेल्ट में. ऐसे में किसानों को कमाई के लिए उन फलों की ओर जाना चाहिए जिन्हें बहुत कम चिलिंग ऑवर की आवश्यकता होती है. बता दें कि प्लम, बादाम, खुबानी और पर्सिमन जैसे फलों को बहुत कम यानी लगभग 300-500 घंटे चिलिंग ऑवर की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि कोई आश्चर्य नहीं कि कई सेब उत्पादकों ने सेब के साथ इन फलों को उगाना शुरू कर दिया है, जो इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
लोकिंदर बिष्ट ने कहा कि वैकल्पिक फलों की ओर रुझान शुरू हो गया है और निकट भविष्य में इसके और बढ़ने की संभावना है. बिष्ट ने कहा कि मौसम में बदलाव के अलावा, सेब की खेती में इनपुट लागत आसमान छू रही है, खासकर कोविड के बाद से सेब की खेती में शुद्ध लाभ कुल बिक्री के 50 प्रतिशत से भी कम रह गया है. वहीं, मौसम में बदलाव के कारण फसल खराब हो रही है और पौधों के सूखने की दर बढ़ रही है. कुल मिलाकर, सेब की खेती को टिकाऊ बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है. सेब की खेती में इनपुट लागत की तुलना में, इन फलों में इनपुट लागत काफी कम है.
इस बीच, बागवानी विभाग भी विविधीकरण को बढ़ावा दे रहा है. हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के तहत सेब बेल्ट में विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए बादाम, खुबानी जैसे फलों के लिए रोपण सामग्री मगाई जा रही गई है, जिससे यहां के किसान सेब के अलावा अन्य फलों की खेती कर सकें.