नए साल में भी रोजमर्रा के सामानों की महंगाई से राहत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. दरअसल, लागत में इजाफे और बढ़े हुए सीमा शुल्क की भरपाई के लिए FMCG कंपनियों ने कीमतें बढ़ानी शुरू कर दी हैं. कंपनियों और FMCG डिस्ट्रीब्यूटर्स के अधिकारियों के मुताबिक चाय और खाद्य तेल से लेकर साबुन और स्किन क्रीम तक 5 से 20 फीसदी तक महंगी होने की आशंका है. ये 12 महीनों की सबसे बड़ी बढ़ोतरी होगी.
इन कीमतों को बढ़ाने में बड़ा रोल पाम ऑयल का माना जा रहा है. खाद्य तेलों समेत कई उत्पादों में पाम ऑयल के इस्तेमाल से इसकी कीमतें देश की महंगाई पर गहरा असर डालती हैं. 2024 में सितंबर में आयात शुल्क में 22 फीसदी और पूरे साल में 40 फीसदी तक के इजाफे ने कंपनियों की उत्पादन लागत को बढ़ा दिया है.
इसके अलावा हाल के बरसों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल की कीमतों में हुए उतार-चढ़ाव ने भी जेब पर डाका डाला है। ऐसे में पाम ऑयल के सबसे बड़े आयातक भारत के लिए इसके दाम बढ़ना महंगाई की बड़ी वजह बन जाता है. आंकड़ों के मुताबिक 2024 में पाम ऑयल की कीमतें 22.17 फीसदी बढ़कर 4,545 मलेशिया रिंगिट प्रति मिलियन टन तक पहुंच गईं.
खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतें आम आदमी की रसोई पर सीधा असर डाल रही हैं. भारत में खाद्य पदार्थों के प्राइस इंडेक्स में ‘ऑयल और फैट’ सेगमेंट का बड़ा योगदान है. आंकड़ों के मुताबिक सितंबर में इस सेगमेंट में 2.5 फीसदी की सालाना ग्रोथ दर्ज की गई है. लेकिन, पाम ऑयल केवल खाद्य तेलों तक सीमित नहीं है. इसका इस्तेमाल कुकिंग ऑयल, बेकरी प्रोडक्ट्स और प्रोसेस्ड फूड जैसे खाद्य उत्पादों -साबुन, शैंपू और ब्यूटी प्रोडक्ट्स जैसे कॉस्मेटिक्स-पर्सनल केयर और बायोडीजल उत्पादन में भी होता है.
ऐसे में समझा जा सकता है कि पाम ऑयल के दाम बढ़ने से किचन का बजट बिगड़ता है. साबुन और शैंपू जैसे जरूरी उत्पाद महंगे हो जाते हैं. बायोडीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स के खर्चे भी बढ़ जाते हैं. 2024 के नवंबर में अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य और कृषि संगठन यानी FAO का वेजिटेबल ऑयल प्राइस इंडेक्स साढ़े 7 परसेंट बढ़कर 164.1 के औसत पर पहुंच गया जो जुलाई 2022 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर था. दक्षिण-पूर्व एशिया में बारिश की वजह से उत्पादन में गिरावट के बाद ये तेजी आई है. ये बढ़ोतरी मुख्य तौर पर पाम ऑयल और दूसरे तेलों की कीमतों में इजाफे की वजह से हुई है.
पाम ऑयल की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर साफ तौर पर देखा जा सकता है. इससे महंगाई बढ़ने के साथ ही ग्राहकों के खर्च और औद्योगिक लागत में भी इजाफा होता है. अगर सरकार ने इस पर सख्त कदम नहीं उठाए, तो महंगाई का ये दबाव लंबे समय तक बना रह सकता है.
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