मिट्टी में पहले जैसी ताकत नहीं रही. अब तो हर बार खाद बढ़ाने के बाद भी उत्पादन में कोई ख़ास अंतर नहीं दिख रहा है. यह बातें पटना जिले के पप्पू कुमार अपनी खेत की मिट्टी को देखते हुए कहते हैं. बारिश होने के बाद भी मिट्टी इतनी मजबूत है कि जैसे मानो कोई पत्थर हो. जलवायु परिवर्तन और खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खाद के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म होती जा रही है. इस बारे में बिहार सरकार के कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल कहते हैं कि राज्य की मिट्टी की हालत अब बहुत अच्छी नहीं है. सूबे के कई जिलों की स्थिति संतोषजनक नहीं है. हालत यह है कि जिन इलाकों में धान बारिश की पानी से हो जाया करता था, अब उन इलाकों में सूखे जैसे हालात बन चुके हैं. वहीं किसानों को जलवायु अनुकूल खेती के साथ अपनी फसल में बदलाव करने की जरूरत है.
राज्य में जिला स्तर पर मिट्टी जांच केंद्र खोले गए हैं. साथ ही किसानों के लिए प्रखंड स्तर पर भी मिट्टी कलेक्शन सेंटर बनाए गए हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में मिट्टी जांच के लिए सरकार विशेष ज़ोर दे रही हैं. वहीं इस वित्तीय वर्ष में करीब दो लाख मिट्टी के नमूनों का संग्रहण और मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण का लक्ष्य है. अभी तक 1 लाख 8 हजार 483 किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिया जा चुका है. हालांकि किसानों का कहना है कि सरकार के द्वारा किए जा रहे कार्यों की गति गांव तक सही से नहीं पहुंच पा रहा है जबकि राज्य में जलवायु अनुकूल खेती पर जोर दिया जा रहा है.
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कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल बताते हैं कि दक्षिण बिहार के इलाकों में अब खेती के तरीकों में बदलाव करने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन की वजह से अब जिन इलाकों में बाढ़ जैसे हालात रहते थे. उन इलाकों में सूखा देखने को मिल रहा है. इसके साथ ही राज्य के जमुई, लखीसराय, नालंदा और मुंगेर सहित अन्य जिलों में जल संकट जैसी स्थिति बन रही है. अब इन इलाकों में धान की जगह अन्य फसलों की खेती पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. कम पानी वाली फसलों का चयन किसान करें. साथ ही मिट्टी की घटती उर्वरा शक्ति को फिर से सही करने के लिए ऑर्गेनिक खेती और जलवायु अनुकूल खेती करने की जरूरत है. आगे उन्होंने कहा कि अगर इसी तरह मिट्टी की शक्ति खत्म होती गई तो आने वाले समय में खेती को लेकर गहरा संकट उत्पन्न हो जाएगा.
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मुंगेर जिले के किसान सत्यदेव कहते हैं कि उनके यहां की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक हो चुकी है. इसकी वजह से उत्पादन पर सीधा असर देखने को मिल रहा है. इसके साथ ही खाद की मात्रा हर साल बढ़ रही है. लेकिन उत्पादन में कोई विशेष असर नहीं पड़ रहा है. पटना जिले के पप्पू कुमार कहते हैं कि पहले खेत की जुताई की जाती थी तो ट्रैक्टर पर ज्यादा जोर नहीं पड़ता था. लेकिन अब एक साधारण खेत की जुताई में ट्रैक्टर गर्म होने लगता है. हर साल एक से दो किलो खाद बढ़ाने के बाद ही उत्पादन हो पा रहा है. ऑर्गेनिक खेती को लेकर सरकार गांव स्तर पर जागरूकता लाए, तो खेती में बदलाव किया जाए. ऑर्गेनिक खेती से जुड़ी कोई विशेष जानकारी ही नहीं है.