कश्मीर में बर्फबारी शुरू हो गई है. बर्फबारी होने से केसर की खेती को फायदा हो रहा है. मैदानी इलाकों में गेहूं को जैसे ठंड से फायदा होता है, वैसे ही केसर को बर्फबारी से फायदा होता है. बर्फबारी होने से कश्मीर के किसान खुश हैं. उन्हें केसर की पैदावार अधिक मिलने की उम्मीद है.
इस सीजन में ठंड तो बढ़ी थी, लेकिन बर्फबारी नहीं हो रही थी. इससे केसर किसानों के चेहरे मायूस थे. हालांकि अभी हाल में बर्फबारी का दौर शुरू हो गया है. इससे किसानों में खुशी लौट आई है. किसानों को लग रहा है कि बर्फबारी यूं ही जारी रही तो उन्हें केसर की पैदावार लेने में कोई दिक्कत नहीं आएगी.
पुलवामा, कुलगाम और पंपोर में जमकर बर्फ गिर रही है. कश्मीर के कुछ खास इलाके हैं जहां बर्फबारी होते ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. ये वो इलाके हैं जहां केसर की पैदावार होती है. केसर की फसल के लिए पानी से ज्यादा बर्फबारी की जरूरत होती है.
बर्फबारी नहीं होगी तो केसर में अर्क (रस) अच्छी तरह से नहीं बनेगा. हालांकि दो से तीन महीने तक पानी की सिंचाई भी जरूरी होती है, लेकिन अगर बारिश न हो तो दूसरे साधनों से फसल को पानी दिया जा सकता है, लेकिन बर्फवारी का कोई विकल्प नहीं है.
कुछ साल पहले तक कश्मीर के पुलवामा समेत कुछ इलाकों में हर साल 15 टन तक केसर का उत्पादन होता था. 5 हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती की जाती थी. लेकिन अब जमीन घटकर करीब 3715 हेक्टेयर रह गई है. वहीं केसर का उत्पादन भी 8-9 टन के आसपास ही सिमट गया है. जबकि ईरान में करीब 50 हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती होती है.
पंपोर के पत्तलघर गांव के केसर किसान इरशाद डार ने 'किसान तक' को बताया कि अगस्त से सितंबर तक केसर की फसल को पानी की जरूरत होती है. अक्टूबर में भी थोड़ा बहुत पानी चाहिए होता है. यह पानी अगर बारिश की शक्ल में मिले तो वह केसर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. दिसंबर से जनवरी तक फसल को बर्फबारी भी चाहिए. दिसंबर से बर्फ गिरना शुरू हो तो केसर की फसल अच्छी होती है.
अगस्त-सितंबर में केसर को बारिश की बहुत जरूरत होती है. वहीं दिसंबर और जनवरी में बर्फवारी केसर की ग्रोथ को बढ़ाती है. लेकिन क्लाइमेट चेंज के चलते बहुत बदलाव आ गया है. अब न तो बारिश के बारे में ठीक-ठीक पता है कि कब होगी और न ही बर्फबारी के बारे में कि होगी. केसर की सिंचाई ज्यादातर प्रकृति के भरोसे है.