बिहार में मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है. यहां तक कि पूरे एशिया में मक्के की खेती का बड़ा नाम है. इससे किसानों की कमाई भी बढ़ती है. यही वजह है कि बिहार के कुछ क्षेत्रों में मक्के को पीला सोना कहा जाता है. यहां मक्के की कटाई शुरू हो गई है.
कटिहार में मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है. यहां का कोढ़ा प्रखंड मक्के की खेती के लिए बहुत मशहूर है. यहां के किसान हैं प्रदीप कुमार चौरसिया जिन्होंने जलवायु अनुकूल मक्के की खेती की है. यहां के मुसापुर गांव में किसान ने खेत की मेढ़ पर मक्के की खेती की है.
मेढ़ पर मक्के की खेती में प्रदीप कुमार को बंपर उपज मिली है. इस किसान को मक्का की कटनी के दौरान लगभग 112 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मक्का का उत्पादन हुआ जिससे उनको एक हेक्टेयर में 1 लाख 58 हजार 500 शुद्ध मुनाफा मिला है. पिछले साल उन्हें फ्लैट बेड पर मक्का की खेती करने पर 98 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही उत्पादन मिला था.
रबी सीजन में कटिहार जिले में जलवायु अनुकूल कृषि प्रोग्राम के अंतर्गत कुल लगभग 450 एकड़ में मेढ़ पर मक्के की खेती की गई है. इस बारे में कृषि विभाग ने बताया है कि कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से किसानों को ट्रेनिंग दी गई. किसानों को बताया गया कि मेढ़ पर मक्का कैसे उगा सकते हैं. किसानों को बीज भी उपलब्ध कराया गया.
बात केवल बिहार की नहीं है. पूरे देश में मक्के की खेती पर जोर दिया जा रहा है. सरकार मक्के की खेती पर जोर दे रही है क्योंकि यह जलवायु अनुकूल है और इसमें पानी की खपत भी कम है. गिरते भूजल स्तर को देखते हुए सरकार मक्के की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसका दाम भी अच्छा मिल रहा है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि मक्के की खेती कर जलवायु परिवर्तन के दौर में फसल चक्र सुधारने में मदद मिलेगी और किसानों को अधिक मुनाफा होगा. किसानों को धान और गेहूं के फसल चक्र से निकालने और नकदी फसलों पर फोकस करने पर जोर दिया जा रहा है. धान की खेती में पानी बहुत अधिक लगता है जबकि मक्का कम पानी में अधिक उपज देता है.
बिहार में मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है. खासकर कटिहार, समस्तीपुर जैसे जिलों में इसकी बंपर पैदावार ली जाती है. वहां की जलवायु और मिट्टी भी मक्के के लिए उपयुक्त है. आजकल मक्का और उससे जुड़े प्रोडक्ट की मांग बढ़ने से बिहार के मक्के की मांग देश-विदेश में बहुत बढ़ी है.