यह सफलता की कहानी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मोहोल तालुका के रहने वाले किसान राजकुमार आतकरे की है. इस सफलता में उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया. डाक विभाग में नौकरी करने वाले राजकुमार ने सीताफल की खेती करने का मन बनाया और इसकी शुरूआत की. इसके बाद उन्होंने खुद की फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाई ताकि अपने उत्पादों को बेचने में परेशानी न हो.
राजकुमार आतकरे ने 10 एकड़ जमीन से खेती की शुरूआत की. उन्होंने आम, नारियल, चीकू और सीताफल की खेती की. दो एकड़ में उन्होंने सीताफल लगाए. पानी की कमी के कारण दो एकड़ में सीताफल की खेती करने का फैसला किया. इसके बाद ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के जरिए खेतों की सिंचाई करते थे. साथ ही उन्होंने अपने खेत में एक तालाब बनवाया जिसकी जल संरक्षण क्षमता एक करोड़ लीटर है. इस तरह से सिंचाई करने की समस्या दूर हो गई.
राजकुमार आतकरे बताते हैं कि पहली बार में सीताफल की उपज अच्छी हुई, जब बाजार ले गए तो उन्हें 130 रुपये प्रति किलो का दाम मिला. पर जब दूसरे सीजन में अपने उत्पाद लेकर बाजार गए तो उन्हें 30 रुपये प्रति किलो की दर से दाम मिला. इस दौरान उन्हें महसूस हुआ कि किसान इतनी मेहनत से पैसे खर्च करके अपनी फसल उगाता है पर बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण किसान को काफी नुकसान होता है. इसके बाद राजकुमार ने सीताफल को नहीं बेचा और अपने घर वापस ले आए.
राजकुमार ने सोचा की अच्छी कीमत पाने के लिए सीताफल की प्रोसेसिंग की जाए. इसके बाद वो मोहोल कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे और वहां के स्थानीय वैज्ञानिक दिनेश क्षीरसागर से चर्चा के बाद सीताफल का पल्प बनाने का निर्णय लिया गया. उन्होंने मशीन खरीदी और पल्प बनाना शुरु किया. इस पल्प को बाजार में 300 रुपये प्रति किलो का दाम मिला. इस तरह से उन्हें 10 गुना अधिक दाम मिला इससे उनकी उम्मीदें बढ़ गई. तब उन्होंने इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला किया.
इसके बाद राजकुमार ने 35 हजार रुपये की मशीन खरीद और चिंचोली में प्रसंस्करण यूनिट की शुरूआत की. खुद का पल्प अच्छी क्वालिटी का का था तो उन्होंने सोचा की क्यों ना इससे और भी उत्पाद बनाए जाए. इसके बाद उन्होंने पल्प से रेवड़ी, आईस क्रीम और कुल्फी बनाने की शुरुआत की. बेहतर क्वालिटी का पल्प था इसलिए उनके उत्पाद की मांग बढ़ी. फिर राजरानी के नाम से उनके उत्पादन ने ग्राहकों के बीच अपनी अलग पहचान बना ली है. आज उनके पास खुद के दो आउटलेट भी हैं. अब उनके कारोबार में उनका बेटा भी मदद करता है.
सीताफल को शरीफा के नाम से भी जाता है. इस की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है. तीन साल में पेड़ तैयार हो जाता है और फल लगने लगते हैं. तब तक ही पानी की आवश्यकता होती है. इसके बाद इस पेड़ को जीवित रहने के लिए बेहद कम पानी की जरूरत होती है. इसलिए राजकुमार अतकरे ने सीताफल की खेती करने का निर्णय लिया. राजकुमार सीताफल की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसके कारण उनके फलों में मिठास अच्छी होती है.
सीताफल को शरीर में मौजूद पाचन तंत्र को मजबूत करने और हृदय को मजबूती प्रदान करता है साथ ही यह एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है. सीताफल एनीमिया को दूर करता है. इसके अलावा ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने, त्वचा को स्वस्थ रखने, बालों को पोषण प्रदान करने और शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भी सीताफल का सेवन किया जा सकता है.