महाराष्ट्र का रत्नागिरी इलाका कई बातों के लिए मशहूर है. यह बालगंगाधर तिलक की जन्मस्थली है. समुद्री इलाका होने के चलते यह फिश म्यूजियम के लिए भी मशहूर है. आप जिस अल्फांसो आम की बड़ी-बड़ी बातें सुनते हैं, वह भी यही की उपज है. यहां अल्फांसो को हापुस कहा जाता है.
हाल में रत्नागिरी के गावखड़ी से जिले का हापुस का पहला बॉक्स पुणे बाजार भेजा गया है. इसकी एक पेटी की कीमत 20 हजार रुपये बताई जाती है. यहां के किसान पावस्कर ने दो दिन पहले जिले के हापुस (अल्फांसो आम) का पहला बॉक्स पुणे भेजा है. इस आम की देश-विदेश जब जगह मांग है. इसकी आवक कम होने से दाम में हमेशा उछाल रहता है.
कोंकण और हापुस का अनोखा रिश्ता है. हापुस की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है, इसलिए रसूखदार हमेशा हापुस के आने का इंतजार करते हैं. आजकल इस हापुस पर प्राकृतिक आपदाओं की मार पड़ रही है. इस साल भी लंबे समय तक बारिश और जलवायु परिवर्तन से आम का मौसम लंबा चलने की संभावना है.
रत्नागिरी के गावखड़ी के कुछ किसानों ने चार महीने पहले आए मोहर (मंजर) की उचित देखभाल के चलते अपने बागों में आम का उत्पादन कर लिया है. गावखड़ी स्थित सहदेव पावस्कर के बगीचे में सितंबर माह में आम पर मोहर आ गया. इसकी रक्षा के लिए उन्होंने आम के बाहर जाल लगाया और आम के ऊपर छत भी लगाया.
आखिरकार हापुस आम के किसान पावस्कर की मेहनत सफल हुई. दो दिन पहले उन्होंने तैयार आमों को काटा और 48 आमों का पहला बॉक्स पुणे बाजार भेजा. उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस बॉक्स से करीब 20 हजार रुपये मिलेंगे. पहले भी इस तरह के रेट मिलते रहे हैं, इसलिए पावस्कर को इस बार अच्छी कीमतों का इंतजार रहा.
हापुस नाम मराठी है जिसे अंग्रेजी में अल्फांसो और गुजराती में हाफूस कहा जाता है. इस आम को मिठास, सुगंध और स्वाद के लिए जाना जाता है. दुनिया की सबसे अच्छी आम की किस्मों में अल्फांसो का नाम है. आम के पेड़ पर फूल आने से लेकर फल लगने में 90 दिन का समय लगता है. यानी 3 महीने में इसका फल तैयार हो जाता है.(इनपुट-राकेश गुडेकर)