झारखंड का खूंटी जिला कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम था, यहां की हवाओं में बारूद की महक होती थी. लेकिन, आज इसकी पहचान बदल रही है. अब खूंटी की फिजाओं में बारूद नहीं हरियाली और लेमनग्रास की खुशबू है. महिलाएं और युवा इसकी खेती कर रहे हैं और अच्छी कमाई हासिल कर रहे हैं. खूंटी जिले के कपरिया गांव के रहने वाले एक ऐसे ही युवा हैं संदीप खलखो, जिन्होंने खुशबूदार लेमनग्रास की खेती को चुना और आज वो एक सफल युवा किसान हैं. लेमन ग्रास तेल निकालने के लिए प्लांट भी लगाया है. इसके अलावा खस जैसे पौधों की भी उन्होंने खेती की है.
लेमन ग्रास की खेती खूंटी जिले के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि खूंटी जिले का अधिकांश हिस्सा पठारी क्षेत्र पड़ता है. जहां पर खूंब झाड़िया हैं. ऊपरी जमीन होने के कारण यहां पर सिचिंत क्षेत्र का अभाव है, साथ ही यहां पर पानी का लेवल भी काफी नीचे है. इसके कारण किसानों को सिंचाई करने में परेशानी होती है.
ये भी पढ़ें- राकेश टिकैत की अपील... महापंचायत में 10 साल पुराने ट्रैक्टरों से पहुंचें किसान
इसलिए कृषि शुरू से ही खूंटी के लोंगों के लिए परेशानी भरा रहा. हालांकि अब नई तकनीक के साथ लोग खेती कर रहे है, सिंचाई की भी व्यवस्था हो रही है. मनरेगा द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से जलस्तर में सुधार हुआ है और किसानों को इसका फायदा हो रहा है.
खूंटी के कपरिया गांव में लेमन ग्रास की खेती करने वाले युवा किसान संदीप खलखो बताते हैं कि साल 2017 में उन्हें लेमन ग्रास की खेती की जानकारी मिली. जेएसएपीएस से पूरी जानकारी हासिल करने के बाद उन्हें भी लेमन ग्रास की खेती करने में जेएसएलपीएस का सहयोग मिला. हालांकि उनके गांव की महिलाएं भी अब जेएसएलएपीएस के सहयोग से लेमन ग्रास की खेती कर रही हैं. संदीप ने लखनऊ से लेमन ग्रास की खेती करने की ट्रेनिंग ली है. इसके बाद 2017 में उन्होंने 25 डिसमिल जमीन पर लेमनग्रास की खेती की. आज संदीप लगभग 25 एकड़ जमीन में लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं. संदीप ने बेहतर कमाई हासिल करने के लिए अपने फार्म में ही लेमन ग्रास प्रोसेसिंग प्लाट स्थापित किया है. इससे वो तेल निकाल कर बाजार में बेचेते हैं. इसके अलावा संदीप ने अपने खेत में खस की भी खेती की है.
लेमनग्रास की खेती के अपने फायदे होते हैं, क्योंकि इसमें लागत कम आती है. एक बार खेत में पौधा लगाने के बाद इसे अन्य सब्जियों से अलग तीन साल तक कमाई कर सकते हैं. इसमें सब्जी की खेती की तरह कमाई की जरूरत नहीं पड़ती है.
ये भी पढ़ें- सूखे की मार के बाद भी धान से भरा सरकारी भंडार, अब तक 87 फीसदी खरीद पूरी
बुंदेलखंड के बीटेक किसान ने बनाया 'जैविक ग्राम', अब 18 बीघा खेत से हो रही साल भर कमाई