हिमाचल प्रदेश में कथित रूप से वनभूमि पर सेब के पेड़ उगाए जाने के मामले में वन विभाग एक्शन में है. विभाग जंगल की जमीन पर लगे पेड़ों और बागानों की कटाई में लगा हुआ है, ताकि यहां फिर से वन प्रजातियों के पेड़-पौधों को लगाकर जंगल काे फिर से बहाल किया जा सके. लेकिन, इस एक्शन पर हिमाचल सेब उत्पादक संघ ने चिंता जताई है और सोमवार को राज्य सरकार के सामने मांग उठाई कि वह हस्तक्षेप करते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करे.
पीटीआई के मुताबिक, हिमाचल सेब उत्पादक संघ की ओर से मीडिया को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता राकेश सिंघा ने कहा कि उन्होंने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है और इस संबंध में मंगलवार को सेब किसानों की एक तत्काल बैठक बुलाने का भी आह्वान किया है. बता दें कि वन विभाग ने पिछले हफ़्ते उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद अभियान शुरू किया है.
हाईकोर्ट ने वन विभाग को वन भूमि से अवैध रूप से उगाए गए सेब के पेड़ों/बगीचों को हटाने का निर्देश दिया था. इस भूमि पर कथित तौर पर सेब किसानों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा था. अदालत ने आगे ऐसे क्षेत्रों में वन प्रजातियों के पौधे लगाने का निर्देश दिया था.
उन्होंने कहा, "उच्च न्यायालय का अनादर किए बिना, हमें 8 जनवरी, 2025 से पारित किए जा रहे बेदखली के आदेशों पर अपनी असहमति और असहमति दर्ज कराने का अधिकार है." उन्होंने कहा कि सेब का रूटस्टॉक मालस सिल्वेस्ट्रिस से विकसित हुआ है, जिसे क्रैब एप्पल के नाम से जाना जाता है, और इसलिए यह एक वन प्रजाति है.
वहीं, राज्य के बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने पेड़ों की कटाई के मामले में केंद्र द्वारा बनाए गए कानून की सीमाओं का हवाला दिया. जगत सिंह नेगी ने एएनआई को बताया कि अतिक्रमण का मुद्दा नया नहीं है और उच्च न्यायालय पहले ही इस पर फैसला सुना चुका है.
नेगी ने कहा, "ये कोई नए मामले नहीं हैं. ये सभी मामले संभागीय आयुक्तों और उपायुक्तों से उचित प्रशासनिक प्रक्रिया से गुजरकर अंततः उच्च न्यायालय पहुंचे. न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है और वन विभाग जैसे सरकारी विभागों को न्यायालय के आदेशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया है."
उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के लिए वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के दायरे से बाहर कोई नीति बनाने की कोई गुंजाइश नहीं है. उन्होंने कहा, "सरकार अपनी ज़मीन की संरक्षक है. अगर किसान प्रभावित होते हैं, तो उन्हें कानूनी उपाय अपनाने चाहिए. जहां तक भूमिहीन किसानों को ज़मीन देने का सवाल है, तो हकीकत यह है कि राज्य के पास ऐसे आवंटन के लिए गैर-वन भूमि उपलब्ध ही नहीं है." नेगी ने केंद्रीय कानून द्वारा लगाई गई सीमाओं पर ज़ोर दिया और बताया कि हिमाचल प्रदेश की लगभग सभी ज़मीन वन भूमि के रूप में वर्गीकृत है और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए भी केंद्रीय मंजूरी की जरूरत होती है.
उन्होंने आगे कहा, "हमने 2023 की बाढ़ से हुए नुकसान के बाद राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें केंद्र से वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में संशोधन करने का अनुरोध किया गया था. कई परिवारों ने अपने घर और ज़मीन खो दी. ये लोग पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं. उन्हें वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अपने अधिकारों की तलाश करने की सलाह दी जानी चाहिए."
बीच में फलदार पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर बात करते हुए नेगी ने बताया कि राज्य सरकार ने महाधिवक्ता के माध्यम से उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया है ताकि कटाई पूरी होने तक ऐसे पेड़ों की कटाई पर अस्थायी रूप से रोक लगाई जा सके, ताकि किसान अपनी उपज बचा सकें.
ये भी पढ़ें -