पोल्ट्री फीड में मक्का एक बड़ा इश्यू बना हुआ है. मक्का के चलते ही पोल्ट्री प्रोडक्ट अंडे और चिकन की लागत बढ़ गई है. पोल्ट्री फार्मर का आरोप है कि इथेनॉल में इस्तेमाल होने के चलते बाजार में मक्का महंगी हो गई है. इसी के चलते पोल्ट्री फीड की लागत भी बढ़ गई है. बाजार में रिटेल में बिकने वाला अंडा भी महंगा हो गया है. पोल्ट्री फीड में 60 से 65 फीसद तक मक्का का इस्तेमाल किया जाता है. करीब दो साल से पोल्ट्री सेक्टर में फीड और मक्का को लेकर उथल-पुथल मची हुई है.
लेकिन एग्री साइंटिस्ट का कहना है कि बाजार में पोल्ट्री फीड में मक्का का विकल्प मौजूद है. पोल्ट्री से जुड़े एक कार्यक्रम में एग्री साइंटिस्ट ने मोटे अनाज के तौर पर मक्का का विकल्प सुझाया है. मिलेट्स ब्रीडर साइंटिस्ट का कहना है कि मक्का के मुकाबले मिलेट्स की फसल में पानी भी कम इस्तेमाल होता है. साथ ही किसी भी मायने में ये मक्का से कम नहीं है.
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साइंटिस्ट डॉ. रूचिका का कहना है कि बाजरा और ज्वार किसी भी तरह मक्का से कम नहीं है. दोनों बराबर का पोषण है. जैसे मक्का में 9.2 ग्राम प्रोटीन होता है, तो बाजरा में 11.8 और ज्वार में 10.4 ग्राम है. इसी तरह मक्का में 26 एमजी कैल्शियम होता है, तो बाजरा में 42 और ज्वावर में 25 एमजी कैल्शियम होता है. अब अगर एनर्जी की बात करें तो मक्का में 358 केसीएएल, बाजरा में 363 और ज्वार में 329 केसीएएल होती है. फैट के मामले में मक्का 4.6 ग्राम, बाजरा 4.8 और ज्वार में 3.1 ग्राम होता है. फाइबर भी मक्का के मुकाबले बाजरा और ज्वार में ज्यादा है.
साइंटिस्ट डॉ. बीके वोहरा का कहना है कि बाजरा और ज्वार को पोल्ट्री फीड में शामिल करने से कई परेशानियां दूर हो सकती हैं. पहली बात तो ये कि किसी एक फसल पर डिमांड का लोड नहीं बढ़ेगा. जैसे अभी मक्का पोल्ट्री -कैटल फीड में शामिल है, इथेनॉल बन रहा है, इंडस्ट्रियल सेक्टर में डिमांड होने के साथ ही फूड में भी डिमांड बढ़ती जा रही है. इसलिए जब डिमांड बढ़ेगी तो रेट तो बढ़ना लाजमी ही है. ऐसे में पोल्ट्री फार्मर के लिए बाजरा और ज्वार फायदे का सौदा हो सकती है. बेशक अभी इसका उतना उत्पादन नहीं है जितना मक्का का होता है, लेकिन जब किसानों के पास डिमांड आएगी और रेट सही हो जाएंगे तो उत्पादन तो बढ़ ही जाना है.
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