पंजाब के पांच जिलों में कुछ हिस्से की जमीन खेती-किसानी के लिहाज से बेकार हो चुकी थी. उस जमीन पर जरूरत से ज्यादा खारा पानी भर गया था. अनाज का एक दाना उगाना नामुमकिन हो गया था. किसी भी तरह की फसल उगाने की सभी गुंजाइश खत्म हो चुकी थी. दक्षिण-पश्चिम में पंजाब के ये जिले हैं फाजिल्का, श्रीमुक्तसर साहिब, बठिंडा, मानसा और फरीदकोट. लेकिन गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना और पंजाब मछली पालन विभाग की कोशिशों के चलते आज ये जमीन लाखों रुपये का मुनाफा दे रही है. खारी जमीन और खारे पानी का फायदा उठाकर यहां झींगा पालन किया जा रहा है.
खारे पानी की मछली का उतपादन भी किया जा रहा है. जबकि कुछ वक्त पहले तक इसी जमीन के किसान मजदूरी करने को मजबूर हो गए थे. लेकिन अब प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं. गडवासु के वाइस चांसलर डॉ. इन्द्रजीत सिंह का कहना है कि गांव शजराना में साल 2013 में वन्नामेई झींगा पालन का कामयाब परीक्षण किया गया था. इसके बाद हमने फाजिल्का के गांव पंचांवाली में साल 2014 में पहला कमर्शियल झींगा उत्पादन फार्म की शुरुआत की थी.
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गडवासु मत्स्य कॉलेज की डीन डॉ. मीरा डी अंसल का कहना है कि गडवासु ने बीते 10 साल में झींगा पालन को हर संभव मदद दी है. फिर वो चाहें जल परीक्षण, बीज परीक्षण की हो. गडवासु ने बीते पांच साल में झींगा किसानों के करीब 1500 जल और 2500 झींगा सैम्पल की जांच की है. इतना ही नहीं करीब 300 किसानों को झींगा पालन की ट्रेनिंग भी दी है. गडवासु की कोशिश है कि युवा झींगा पालन के क्षेत्र में आएं. मत्स्य कॉलेज के सुवा स्नातकों को भी इसमे शामिल किया जा रहा है. इसी के चलते साल 2022 में गडवासु ने फाजिल्का में तीन झींगा पालन प्रदर्शनी का आयोजन किया था.
इसके जरिए बताया गया था कि कैसे इसका स्टोर किया जा सकता है और कैसे इसकी मार्केटिंग करनी है. साथ ही मार्केटिंग के जोखिमों को कम करने के तरीके भी बताए गए थे. झींगा उत्पादन बिना किसी जोखिम के सही तरीके से हो इसके लिए बायो सिक्योरिटी के बारे में बताया गया. यही वजह है कि जिन युवाओं ने दो साल पहले एक एकड़ से झींगा पालन की शुरुआत की थी वो अब तीन से चार एकड़ में झींगा पालन कर रहे हैं.
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डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि झींगा की फसल चार महीने में तैयार हो जाती है. और अगर उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक सब कुछ ठीक-ठाक रहे तो फिर चार महीने की फसल से एक हेक्टेयर में 10 लाख रुपये मुनाफा कमाने से कोई नहीं रोक सकता है. रही बात डिमांड की तो भारत झींगा एक्सपोर्ट में टॉप पर है. हर साल करीब आठ लाख टन झींगा एक्सपोर्ट हो जाता है. वहीं उत्तरी राज्यों में घरेलू खपत को बढ़ावा देने, उत्पादन लागत को कम करने और इंटरनेशनल मार्केट में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए राज्य के संबंधित विभागों और एजेंसियों को जरूरी नीतिगत कार्रवाई करने का प्रस्ताव भेजा है.