दुधारू पशुओं में अनेक रोग अनेक कारणों से होते हैं. सूक्ष्म विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, कुपोषण और शरीर के अंदर मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया में गड़बड़ी इसके प्रमुख कारण हैं. इनमें से अनेक रोग जानलेवा होते हैं और अनेक रोगों का पशु उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. कुछ रोग एक पशु से दूसरे पशु में फैलते हैं, जैसे खुरपका व मुंहपका, गला घोंटना आदि संक्रामक रोग कहलाते हैं. कुछ रोग पशुओं से मनुष्यों में भी फैलते हैं, जैसे रेबीज, तपेदिक आदि इन्हें जूनोटिक रोग कहते हैं. वहीं पशुओं में कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जो जानलेवा हो सकते हैं. उनमें से एक है पशुओं में होने वाला छड़ रोग. क्या हैं इसके लक्षण और बचाव का तरीका आइए जानते हैं.
छड़ रोग में अक्सर तेज बुखार होता है जिससे पशुओं का पेट फूलने लगता है. इस बीमारी के चपेट में आते ही पशु अचानक गिर जाते हैं और शरीर कांपने लगता है. इतना ही नहीं पशुओं की सांसें तेज हो जाती हैं. मरने के बाद प्राकृतिक छिद्रों से खून के रंग का तरल पदार्थ निकलता है जो जमता नहीं है. यह पशुओं के लिए एक जानलेवा रोग है.
अब तक इस रोग का कोई प्रभाव करी इस्लाज नहीं मिल पाया हैं. रोग होने पर कोई भी असरदार उपचार सलाह लेनी चाहिए. रोग की रोकथाम के लिए बच्छियों में 3-6 माह की आयु में ब्रुसेल्ला-अबोर्टस स्ट्रेन-19 के टीके लगाए जा सकते हैं. पशुओं में प्रजनन की कृत्रिम गर्भाधान पद्यति अपना कर भी इस रोग से बचा जा सकता है.
जिस क्षेत्र में यह रोग अधिक हो, वहां पशुओं को बरसात से पहले नियमित रूप से 'छड़ रोग' का टीका लगवाना चाहिए. छड़ रोग से पशु की मृत्यु होने पर शव को 6 फीट गहरे गड्ढे में डालकर ऊपर से चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क देना चाहिए ताकि यह संक्रमण दूसरे पशुओं में ना फैले.
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