Dairy Goat Breed एड मार्क्स खासतौर पर बकरियों के संबंध में दो बार नीदरलैंड से भारत आ चुके हैं. मार्क्स की नजर देश की दो खास बकरियों की नस्ल पर है. मार्क्स इन दोनों नस्ल की बकरियों को डेयरी गोट्स कहते हैं. उनकी कोशिश इन दोनों बकरियों के दूध उत्पादन को और बढ़ाया जाए. इसके लिए उनकी योजना है कि विदेशी सानेन नस्ल के बकरों से दोनों भारतीय नस्ल की बकरियों को गाभिन कराया जाए. क्योंकि सानेन नस्ल की बकरियां भी खूब दूध देती हैं. भारतीय नस्ल की बकरियों की बात करें तो वो बरबरी और बीटल हैं. मार्क्स इन्हीं दोनों बकरियों पर फिदा हैं.
इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए वो पंजाब में कई सरकारी अफसरों के संपर्क में हैं. केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल दूध उत्पादन में बकरी के दूध का योगदान करीब तीन फीसद है. करीब 70 लाख लीटर बकरी के दूध का उत्पादन बीते साल हुआ था. और अगर बीटल-बरबरी नस्ल की बकरी की बात करें तो दोनों ही दूध और मीट के लिए खास पहचान रखती हैं.
कृषि विज्ञान केन्द्र, बरनाला के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. प्राहलाद सिंह ने किसान तक को बताया कि नीदरलैंड से आए एड मार्क्स ने बीटल और बरबरी बकरी को देखने और उसके बारे में जानने के बाद उसमे दूध की संभावनाएं ज्यादा जताईं. उनका कहना था कि अगर बीटल और बकरी के खानपान पर अच्छे से ध्यान दिया जाए. उन्हें सिर्फ मैदान में चराने पर ही नहीं रखा जाए. दाना और पत्तेदार खाने को दिया जाए. रहन-सहन पूरी तरह साइंटीफिक तरीके से हो. बीमार बकरियों को अलग और हैल्थी को अलग रखा जाए. कम दूध देने वाली अलग और ज्यादा दूध देने वालीं अलग रखी जाएं.
बकरियों के शेड का वातावरण अच्छा रहे. इस दौरान मार्क्स को पंजाब में बकरियों के कई फार्म दिखाए गए. भारतीय बकरी पालन के बारे में जानकारी दी गई. जिस पर मार्क्से ने बकरियों का रिकॉर्ड रखने और उनकी टैगिंग करने की सलाह भी दी. कुछ तकनीकी अड़चन के चलते अभी इस प्रोजेक्ट पर आगे बात नहीं बढ़ पा रही है.
डॉ. प्राहलाद सिंह ने बताया कि मार्क्स ने बकरियों के दूध पर चर्चा शुरू होते ही उन्होंने उसके दूध से बने चीज के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी. चीज की डिमांड और चीज के बाजार के बारे में जानकारी दी. वहीं बकरियों के दूध की मेडिशनल वैल्यू के बारे में भी बताया. वहीं बकरी पालन और दूध कारोबार से जुड़ा एक खास सुझाव उन्होंने यह भी दिया कि इस फील्ड में महिला कोऑपरेटिव को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
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