देश के ग्रामीण इलाकों में कृषि के बाद डेयरी व्यवसाय को सबसे अच्छा व्यवसाय माना जाता है. वहीं इस व्यवसाय में ऐसे नस्लों की मांग बहुत ज्यादा रहती है जो ज्यादा दूध देती हैं. ऐसे में पशु की ज्यादा दूध देने वाली नस्ल का चुनाव करना बहुत जरूरी है. वहीं अगर आप गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल की तलाश में हैं, तो मेवाती नस्ल के गाय का पालन कर सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर इस नस्ल का पालन भार ढोने के उद्देश्य से किया जाता है.राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अनुसार मेवाती नस्ल की गायें एक ब्यांत में औसतन 958 लीटर दूध देती हैं. वहीं मेवाती नस्ल की गायें राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पायी जाती हैं. इसे महवाती या कोसी नाम से भी जाना जाता है. गाय की इस देसी नस्ल का ज्यादातर पालन राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा में किया जाता है. मेवाती नस्ल की गाय का रंग मुख्य तौर पर सफेद होता है.
इसके अलावा, मेवाती नस्ल के बैल शक्तिशाली और विनम्र होते हैं, जो जुताई, कटाई और गहरे कुओं से पानी खींचने के लिए उपयोगी होते हैं. ऐसे में आइए मेवाती गाय की कीमत, पहचान और विशेषताएं जानते हैं-
• मेवाती मवेशी आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं.
• गायों की ऊंचाई 125.4 सेमी होती है.
• सींग अधिकांश मवेशियों में बाहर, ऊपर, अंदर की ओर; और कुछ जानवरों में बाहर और ऊपर की ओर होते हैं.
• सींग आकार में छोटे से मध्यम होते हैं.
• चेहरा लंबा, माथा सीधा, कभी-कभी थोड़ा उभरा हुआ होता है.
• शरीर की खाल ढीली होती है, लेकिन लटकी हुई नहीं होती है.
• गाय के थन पूरी तरह विकसित होते हैं.
• बैल शक्तिशाली, खेती में जोतने और परिवहन के लिए उपयोगी होते हैं.
• मेवाती नस्ल की गायें एक ब्यांत में औसतन 900 से 1000 लीटर दूध देती हैं.
• प्रतिदिन लगभग 5 से 7 लीटर दूध देती हैं.
• गायों का वजन 350-370 किलोग्राम होता है.
मेवाती गाय की कीमत दूध देने की क्षमता, स्थान, गाय की उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. वहीं देश में मेवाती गाय की कीमत 20 हजार से लेकर 40 हजार रुपये तक है.
बीमारियां: पाचन प्रणाली की बीमारियां, जैसे- सादी बदहजमी, तेजाबी बदहजमी, खारी बदहजमी, कब्ज, अफारे, मोक/मरोड़/खूनी दस्त और पीलिया आदि.
रोग: तिल्ली का रोग (एंथ्रैक्स), एनाप्लाज़मोसिस, अनीमिया, मुंह खुर रोग, मैगनीश्यिम की कमी, सिक्के का जहर, रिंडरपैस्ट (शीतला माता), ब्लैक क्वार्टर, निमोनिया, डायरिया, थनैला रोग, पैरों का गलना, और दाद आदि.
गाभिन पशुओं का अच्छे से ध्यान रखना चाहिए. दरअसल,अच्छा प्रबंधन करने से अच्छे बछड़े होते हैं और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है. इसके अलावा बछड़े को सिफारिश किए गए टीके लगवाएं और रहने के लिए उचित आवास की व्यवस्था करें.