अच्छी खबर ये है कि देश में सीफूड उत्पादन 180 लाख टन पर पहुंच गया है. हालांकि सीफूड एक्सपोर्ट में सबसे ज्यादा डिमांड झींगा की है. लेकिन टैरिफ की लड़ाई के बीच झींगा एक्सपोर्ट पर बहुत असर पड़ा है. 60 हजार करोड़ के सीफूड एक्सपोर्ट में 40 हजार करोड़ का तो झींगा ही था. लेकिन बीते कुछ वक्त से झींगा में गिरावट देखी जा रही है. शायद यही वजह है कि अब देश की नजर वर्ल्ड के इंटरनेशनल सीफूड बाजार पर है. फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो विश्व में मछली से बने आइटम (वैल्यू एडेड प्रोडक्ट) का बाजार तेजी से बढ़ रहा है.
अभी ये बाजार करीब 19 हजार करोड़ डॉलर का है. भारत की हिस्सेदारी इसमे 800 करोड़ डॉलर की है. खास बात ये है कि इस प्लान पर काम भी शुरू हो चुका है. साल 2030 तक भारत ने इस लक्ष्य को हासिल करने वक्त तय किया है. भारतीय समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीडा) इस प्लान पर काम कर रहा है. 120 से ज्यादा देशों में सीफूड एक्सपोर्ट किया जा रहा है.
फिशरीज डिपार्टमेंट से जुड़े एक्सपर्ट की मानें तो प्लान के मुताबिक साल 2030 तक फिश वैल्यू एडेड प्रोडक्ट को डबल से भी ज्यादा करने के लिए अभी छह साल बाकी हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए प्लान बनाया गया है. इसके लिए सबसे पहले तो बुनियादी ढांचा तैयार करने, प्रोडक्ट उत्पादन की क्षमता बढ़ाने और लेबर को ट्रेनिंग देने का काम चल रहा है. विदेशी एक्सपर्ट से भी लेबर को ट्रेनिंग दिलाई जा रही है. पहले दौर की ट्रेनिंग के लिए एक्सपर्ट के तौर पर वियतनाम से ट्रान क्वोक सोन और चू थी तुयेट माई को बुलाया गया था. लेबर को 22 तरह के प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग दिलाई जा रही है.
सीफूड एक्सपोर्टर ने एमपीडा से मांग करते हुए कहा है कि मौजूदा वक्त में सीफूड तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले तमाम आइटम फीस के साथ इंपोर्ट किए जा रहे हैं. मछली से तैयार होने वाले आइटम के लिए ब्रेड क्रम्ब्स, सॉस, प्री-डस्ट और प्लास्टिक ट्रे की जरूरत होती है. इसलिए ऐसे आइटम पर से इंपोर्ट डयूटी हटाई जाए. साथ ही उनका कहना है कि वैल्यू एडेड प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट को बढ़ाने के लिए ये भी जरूरी है कि इंपोर्ट की एफओबी डयूटी में छूट को बढ़ाया जाए.
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